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________________ माध, वीर नि०सं०२४५६] .सुभापित मणियों १५६ हिन्दी X उर्दूसत्य-समान कठोर, न्याय सम पक्ष-विहीन, न सुनो गर बुरा कहे कोई,न कहो गर वरा करे कोई हूँगा मैं परिहास-रहित, कूटोक्ति-क्षीण । रोकलोगर गलत चले कोई, बख्शदो गर स्वता कर कोई।। नहीं करूँगा क्षमा, इंच भर नहीं टलूँगा, x x -लिब' तो भी हूँगा मान्य, ग्राह्य, श्रद्धेय बनँगा ॥ कीया ग़रूर गुलग्न जब रंग रूप बू का । x x -यगवी मारे हवाने मोके शबनम ने मुँह पथका।। जानxx.x काँधा बदल बदल गए लेकर के कत्र तक । सीख बिना नितसीखत हैं,विषयादिकसेवनकीसुघराई॥ कितना में दोस्तों के लिए बारदोश था !! ता पर और र. रसकाव्य, कहा कहिये तिनकी निठराई। x x -'नाज' अन्ध असझनकी अखियानमें डारत हैं रज राम दहाई॥ हविस५ जीने की है यूँ उम्र के बेकार कटने पर । x x -भूधरदास । जो हमसे जिन्दगीका हक अदा होता तो क्या होता ? x x --'चकवस्त' हे विधि! भूल भई तुमसे, समुझे न कहाँ कस्तूरि बनाई, ____ "कमज अमीरी में बदल जाते हैं। दीन कुरंगन के तन में, तृन दन्त धरें करुना नहिं आई। अपने भी फ्रकीरी में बदल जाते हैं। क्योंनरची उनजीभनिजे,रसकाव्य करेंपरकोदुखदाई? दांत बनवाते हैं चढ़वाते हैं ऐनक बुट्टे । साधु-अनुग्रह दुर्जन-दंड, दुहूँ सधते विसरी चतुराई !! माजा भी पीरी में बदल जाते हैं।" xx - भूघरदासा नहीं मालम यह आजाद रह कर क्या सितम हाती। सत्संगतिसे बढ़ कर, सची शिक्षा कहीं नहीं मिलती। कि इन बत्तीस दाँतों की हिफाजतमें जबा १० रम्यदी। पारस पत्थर अगर मिले उसको। ----नाश' x x -दरबारीलाल । जिन्दा दिल वो हैं कि जो कोम पै जाँ देते हैं । जो उद्योगी बने काम करते रहते हैं, मुर्दा दिल अपनी भलाई पै मरा करते हैं । सफल रहें या विफल दुःख-सुख सब सहते हैं। x -मंगतराय "लाई हयात" आए क़जाले चली चल । आखिर वेही पूर्ण सफलताको पाते हैं, अपनी खुशीसे आए न अपनी खुशी चले ॥" स्व-परोन्नति का दृश्य जाति को दिखलाते हैं। .x x -दरबारीलाल । उसमें एक खुदाई का जलवा है वगरना शेख । "दुर्बल को न सताइये जाकी मोटी हाय । मिजदा करे से फायदा पत्थर के सामने ? मुए चाम की फॅक सों सार भसम होजाय ॥" x -शेख xxx अवस१५ यह जैनियों पर इत्तहामे। बुतपरस्ती है। सज्जन चाल मराल सम, औगुन तज गुन लेत । बिना तसवीर के हरगिज़ तसव्वर हो नहीं सकता। x x -मंगतराय। शारदवाहन वारि तज, ज्यों पयपान करत ।। ___x x . -वृन्दावन । १क्षमा कारढो. २ फल. ३ मांस. ४ स्कन्धभार. ५ तृष्णा ६ करीने. सुबहल्य. अंगोपांग. ८ कुरापे में. ६ स्वतन्क्ष. १० "सब रसको रस नेम है, नेम को रस है प्रेम । जीभ-जिहा. ११जिन्नी. १२ मौत. १३ ईश्व का तेज-भान. जा घर नेम न प्रेम है,ता घर कुसल नछेम ।। १४ प्रशामाविक. १५व्यर्थ. १६ इलज़ाम-आरोप. १७ मूर्तिमान - X X का ध्यान।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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