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________________ माघ,वीर नि०सं०२४५६] पुरानी बातों की खोज १३९ टोडरसाहु गर्गगोत्री अग्रवाल थे भटानियाकोल नगर के रहने वाले थे और काष्टासंधी भद्वारक मदारक मथुरामें ५०० से अधिक जनस्तूप कुमारसेनकं आम्नायी थे । कुमारसेनको भानुकीर्तिका, भानुकीर्निको गुणभद्रका और गुणभद्रको मलयकीर्ति .. कवि गजमल्ल के 'जम्बूस्वामिचरित' में-उसके भट्टारक का पट्टशिष्य लिखा है। परन्तु लाटीसंहितामें कथामग्ववर्णन' नामक प्रथम मर्गम-एक खास जो वि०सं० १६४१ में बनकर समाप्त हुई है, यही बातका पता चलता है, और वह यह कि उस वक्तग्रंथकार इन्हीं कुमारसेन भट्टारक के पट्ट पर क्रमशः __अकबर बादशाहके समय में-मथुग नगरी के पाम हेमचंद्र, पद्मनन्दी, यशःकीर्ति और क्षेमकीर्ति भट्टारकों की बहिमि पर ५०० में अधिक जैनम्नप थे । मध्यमें का होना लिखते हैं और प्रकट करते हैं कि इस समय ___ अन्त्य केवली जम्बस्वामी का स्तप ( निःसहीस्थान) क्षेमकीर्ति भट्टारक मौजूद हैं। इससे यह साफ माल्म , और उसके चरणों में ही विदाच्चर मुनि का होता है कि दस वर्षके भीतर चार पट्ट बदल गये हैं। म्तप था। फिर उनके आस-पास कही पाँच, कहीं पाठ कहीं दस और कही बीम इत्यादि म्पने दूसरे मुनियों और ये भट्टारक बहुत ही अल्पायु हुए हैं । संभव है कि के स्तप बने हुए थे। ये स्तप बहुत पुराने होने की उनकी इस अल्पायुका कारण कोई आकस्मिक मृत्यु वजह से जीर्ण-शीर्ण हो गये थे। साहु टोडरजी जब अथवा नगरमें किसी वबाका फैल जाना रहा हो। , यात्रा को निकले और मथुग पहुँच कर उन्होंने इन कवि राजमल्लन इस ग्रन्थमें भी अपना कोई विशेष म्तपो की इस हालत को देखा तो उनके हृदय में उन्हें परिचय नहीं दिया । हॉ, “स्याद्वादानवद्य गद्यपद्य फिर से नये कग देने का धार्मिक भाव उत्पन्न हुआ। । हा, "स्याद्वादानवधगयषय चनाँचे आपन वडी उदारता के माथ बहुन द्रव्य खर्च विद्याविशारद" यह विशेषण इम गन्थमें भी दिया करके उनका नतन संस्कार कराया। म्तपों के इस गया है। साथ ही,गन्थ रचनेकी प्रार्थनामें अपने विषय नवीन संस्करणमें ५०१ म्तपोंका ना एक ममूह और में इतनी सूचना और की है कि श्राप परोपकारकं लिय १३ का दूमरा, ५१४ स्तुप बनाये गये और उनके कटिबद्ध' थे । यथाः पास ही १२ द्वारपाल आदिक भी स्थापित किये गये। जय निमारग का यह मब कायं पग हो गया तब चतयूय परोपकाराय बद्धकता महाधियः । उत्तीणाश्च परंतीर कृपावारिमहादधः ॥ विध संघको बलाकर उत्सवके माथ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी क्यवार दिन ९ घडी के ऊपर पूजन तथा मूरिमंत्रततोनग्रहमाधाय बोधयध्वं तु मे मनः। परम्मर इम नीर्थ मम " प्रभावशाली क्षेत्रकी प्रतिष्ठा जम्बूस्वामिपुराणम्य शुश्रूषा हृदि वर्तते । नीम का कारण यह है कि कवि बहुत संभव है कि श्राप कोई त्यागी ब्रह्मचारी ही द्वारा जम्बू'वामीका निर्वागा स्थान मथुराको न मानकर, विपुलाचल माना रहे हो । अस्तु; इस ग्रन्थ परसे इतना तो स्पष्ट है कि गया है (तता जगाम निर्वागा कवनी विपुलाचनात)। मलकीर्तिक शिष्य जिनदास ब्रह्मचारीने भी विपलाचलको ही निगम्थान बतआप कुछ वर्ष तक आगरेमें भी रहे हैं। और आगरक लाया है। मथुगको निव गास्थान मानने की जा प्रमिद्धि है वह किम बाद ही आप वैराट नगर पहुंचे हैं जहाँ कि जिनालयमें आधार पर प्रवलम्बित है, यह अभी तक भी कुछ टाक मालूम नहीं बैठ कर आपन लाटीमंहिताकी रचना की थी। होमका।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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