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________________ तीर्थंकरोंके चिन्हों का रहस्य पौष, वीर नि०सं०२४५६ | चिन्होंका क्या अर्थ है सो सामुद्रिक शास्त्र से तो कुछ उत्तर दिया नहीं जा सकता, बल्कि यह भ्रम और पैदा हो जाता है कि ये चिन्हतो मनुष्य शरीर पर होते ही नहीं; क्योंकि यदि होते तो सामुद्रिक शास्त्रों में इनका कुछ फलित भी अवश्य दिया गया होता । प्रत्युत इसके, भैंमा, सूअर, सर्प, सिंह और सेही ये पशु स्वभावसे ही अशुभ समझे जाते हैं । इनके चिन्होंका तीर्थकर जेसे शुभ तथा उत्तम व्यक्तियोंके पवित्र शरीर पर होना कदापि संभव नहीं है । पर इस लिये सामुद्रिक शास्त्रोंके बहानेमे इस प्रश्नको टालना इस समय हमारे लिये उचित विधान नहीं है। इन चिन्होंके रहस्य का अवश्य ही उद्घाटन होना चाहिये । आशा है हमारा विद्वन्मण्डल इस ओर अवश्य ध्यान देगा और इस पत्रके आगामी अङ्क में उन घटकी सप्रमाण व्याख्याकी जायगी जिनके द्योतक पूर्वाचार्यों ने यह चिन्ह नियत किये हैं । सम्पादकीय नोट इस लेख में जिस विषयको उठाया गया है वह निःसन्देह विचारणीय है और इस बातकी अपेक्षा रखता है कि विद्वानों द्वारा उस पर अच्छा प्रकाश डाला जाय, जिससे इन चिन्होंका रहस्य खुल जाय । लेखक महाशय की इच्छा है कि मैं भी इस पर कुछ प्रकाश डालूँ । परन्तु मैं अभी तक उसके लिये पूरी तौर से तय्यार नहीं हूँ । फिर भी, इतना जरूर कहूँगा कि लेखमें जो यह बात कही गई है कि, 'शेष १४ तीर्थकरोंके चिन्होंका सामुद्रिक शास्त्रानुसार कुछ भी उत्तर नहीं दिया जा सकता, वे मनुष्य शरीर पर होत ही नहीं, होते तो सामुद्रिक शास्त्रोंमें उनका कुछ फलित जरूर दिया गया होता,' वह कुछ ठीक मालूम नहीं होती - एक प्रकार से निर्मूल जान पड़ती है और यह सूचित करती है कि थोड़े ही ग्रंथों परसे और उन्हीं के कथनको प्रकृत विषयका पूरा कथन समझ कर उसकी कल्पना करली गई है । अन्यथा, सामुद्रिक विषयके १२१ ऐसे भी ग्रंथ मौजूद हैं जिनमें 'वृषभ' आदि दूसरे भी कितने ही चिन्होंका मनुष्य शरीर पर होना बतलाया है और उनका फलितार्थ भी दिया है। उदाहरण लिये दो एक नमूने नीचे दिये जाते हैं:रथयानकुंजरवाजिवृषायाः स्फुटाः करे येषाम् । सैन्यजयनशीलास्ते सैन्याधिपतयः पुरुषाः । १७२ यह बम्बई के 'श्रीवेंकटेश्वर' प्रेममें मुद्रित एक बड़े 'मामुद्रिकशास्त्र' का वाक्य है और इसमें वृषभ (बैल) चिन्हका फलित भी परसेनाका जीतने वाला सेनापति होना बतलाया है। साथ ही, 'आदि' शब्द के प्रयोगद्वारा यह भी सूचित किया है कि रथ, यान, हाथी, घोड़ा और बैल के अतिरिक्त और भी चिन्ह इसी फल केक मनुष्य शरीर में होते हैं । ता गांधा सैरिभज बुक मृषककाकककसमाः । रेखाः स्युर्यस्य तले तस्य न दूरेऽतिदारिद्र्यम्॥ ३४ श्वशृगालमहिषमूषक काकोलूकाहिकांककर भाद्याः चरणतले जायन्ते यम्याः सा दुःखमाप्नोति ॥ ( ये भी उक्त ग्रंथके वाक्य हैं। इन दोनोंमें भैंसे मग्भि- महिप) का और दूसरे में सर्प तथा कोक (भेड़िये ) का चिन्ह भी मनुष्य शरीर में होना बतलाया है और उनका फल भी दिया है। साथ ही, गोधा, श्वान, शृगाल, मूपक, काक, उल, और ऊँट वग़ैरह के चिन्होंका भी मनुष्य शरीरमें होनेको विधान किया है। वृक्षोत्रा यदि वा शक्तिः करमध्ये तु दृश्यते । अमात्यस्तु स विज्ञेयां राजश्रेष्ठी च जायते ॥ यह एक छोटेसे हस्त लिखित 'सामुद्रिकाशास्त्र' का वाक्य है जो हाल में जैन सिद्धान्तभवन आरासे मेरे पास जाँच के लिये आया है। इसमें 'वृक्ष' के चिन्ह का उल्लेख है और उसका फल मंत्री अथवा राजश्रेष्ठी होना बतलाया है। और स्त्रीके शरीर में इसी चिन्हके होनेका फल एक दूसरे श्लोक में - 'पादपो वाभवेत्र राजपत्नी भविष्यति' द्वारा - राजपत्नी होना लिखा है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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