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[ वर्ष १, किरण २
अनेकान्त 'मानस्तंभ' है जो कि मानो अनेक प्राचीन शिल्पकलाओंको साक्षात् मूर्त्ति ही जान पड़ता है । इस मंदिरको शक सं० १३५२ (सन् १४२८ ) में यहांके भव्य श्रावकोंने बनवाया है, ऐसा शिला लेख है । मूडबिद्री में ये दोनों मंदिर बहुत प्राचीन तथा महत्वके । इनके अलावा और भी सोलह मंदिर हैं, जो कि ३००, ४००, वर्षके अर्वाचीन हैं, ऐसा शिलालेख से पाया जाता है । यहाँ के इन दो मंदिरोंके चित्र भी यथावसर 'अनेकान्त' के प्रेमियोंके सामने रखने का मेरा विचार है ।
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मनोज्ञ पंच धातुमय श्रीभगवान् चन्द्रप्रभकी खड्गासन विशाल भव्य प्रतिमा विराजमान है । इस मंदिर की तीसरी मंजिल पर एक वेदी है, जिसमें स्फटिककी छोटी बड़ी बहुत मनोज्ञ प्रतिमायें ४० हैं और इसकी दूसरी मंजिल पर अनेक प्रतिमाएँ तथा सहस्रकूट चैत्यालय भी अत्यंत चित्ताकर्षक है। यह मंदिर बहुत विशाल है । इसका बाह्य प्राकार (कोट) अत्युन्नत तथा शिलामय है जो, इस मंदिरकी प्रदक्षिणारूपमें एक मीका हो जाता है । इतना विशाल तथा अनर्घ्य जैन - मंदिर अन्यत्र कहीं भी नहीं है। इस मंदिरमें प्रवेश करते ही बहुत ऊँचा मान मदको स्तंभन करने वाला
* बुरी भावना
जाना नहीं अच्छा कभी जैनियोंके मंदिर में,
किसी भान्ति अच्छी नहीं कृष्णकी उपासना । शम्भुका स्मरण किये होना जाना क्या है कहो,
राम नाम लेनेसे क्या सिद्ध होगी कामना || बरे हैं मुसलमान, हिन्दू बड़े काफ़िर हैं,
ऐसी हो परस्पर में बुरी जहाँ भावना ।
प्रेम हो न श्रपस का, एका फिर कैसे हो,
क्यों न भोगे हिन्द माता नई नई यातना || - गिरिधर शर्मा
क्रमशः