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________________ શ્રી ક લા. અમૃત મહો સવ વિશેષાંક अमृत महोत्सव पर श्री उपाध्ये का प्रवचन सेठसाहब जितने श्रीमान हैं, उतना ही भाई दलपतभाई विद्यामंदिर स्थापन करके एक उनका व्यक्तिगत जीवन सादगी से परिपूर्ण है। सुदर तथा समृद्ध साहित्य संशोधन केन्द्र निर्माण वैसे ते। वे प्रकृति से गंभीर, प्रसिद्धिसे विमुख किया। पश्चिम हिंदुस्थान के कितने ही अलभ्य और कम बोलने वाले हैं । लम्बी लम्बी बाते हस्तलिखित ग्रन्थ, उनके फेाटेा य फिल्म यहाँ कहने की अपेक्षा ठोस कार्य करना यह उनका उपलब्ध हैं। इस तरह यह विद्यामन्दिर विद्यास्वभाव है। उनके जीवन में. परंपरागत सत्त्व- निष्ठ लोगों के लिए एक तीर्थक्षेत्र बन गया है। शील स्वाभिमान और कौटुबिक परम्परा पर गुजरात में श्रीमानों की परम्परा सदियों से चाल खास निष्ठा मुझे महसूस होती है। है, उसी के साथ ऐसी संस्था से विद्वानों की परम्परा भी चालू रहेगी। शास्त्रो का जीणोद्धार जिस तरह मोक्ष के साधन सम्यग्दर्शन, जो हआ है और हो रहा है उसका श्रेय श्रीमान् सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र हैं उसी तरह सेठ और उनके कुटुवियों की दानश् रता को है। चतुर्विध संध के धार्मिक व सामाजिक संघटन के लिये देव, शास्त्र और गुरू यह रत्नत्रय है। जैन साधुओं का असर गुजरात के समाज श्रीमान् सेठ कस्तुरभाई इन तीनों के परम पर सदैव होता रहा है। इसका प्रत्यय हमें जीणों द्धारक हैं। नया मंदिर बनवाने में तो महात्मा गांधीजी के जीवन में अ चुका है। पुण्य है ही, लेकिन जो मंदिर निर्माण किये गये जिस वक्त साधुवगका आचार शालानुसार नहीं हैं उनके जीणोद्धार में जादा पुण्य है, यह मेरी रहता है, तब उसके विपरीत परिणाम समाज राय हैं । वस्तुपाल तेजपाल आदि लोगोंने सुदर पर होते ही हैं। साघुसमुदाय का जीर्णोद्धार मदिर निर्माण किये हैं। वे जैसे कलापूर्ण हैं करने का कार्य सेठ साहबने हाथ में लिया था वैसे ही धार्मिकताके मानबिंद भी हैं। इन पुराने परन्तु वस्तुस्थिति देखकर उन्होंने र ह कार्य बद मंदिरोंका जीणोद्धार सेठ साहबने मौलिक और कर दिया। शास्त्रों में कहा है “निमे ही मोहिने सौंदर्यपूर्ण किया है। जीवनमें सादगी और मुनेः गृही श्रेयान् ” सचमुच इस कार्य में सेठ उद्योग में पुरोगामित्व के साथ साथ उनकी साहबने एक निष्ठावान् निर्माही श्रार क का कार्य कलाप्रियता और पुरानी वस्तुओं पर प्रेम खास किया है। जिस धैर्य से उन्होंने या कार्य स्थप्रशंसनीय है। मंदिरोके जीर्णोद्धार में उनकी गित किया उसी में उनकी सफलता मालम देवभक्ति पूर्णतया प्रतीत होती है। होती है। मैं आशा करता हूँ कि हमारा मुनि वर्ग इस घटना से सबक लेगे और अन्य श्रावक ___ मैं मानता हैं कि सेठसाहब ने किया हुआ भी सजग रहेंगे। फलतः सेठ साहबन शुरु किया शास्त्रों का जीणोद्धार चिरस्थायी और दूरगामी " हआ साघु संपका जीणोद्धार जैन धर्म के लिये परिणाम करनेवाला होगा। चालीस वर्षो से . स लाभप्रद होगा। उन से किया हुआ देव, शास्त्र पूर्व पाटण, जैसलमोर आदि गुजरात या राज - और गुरु सम्बधी जीर्णोद्धार अत्यात अर्थपूर्ण स्थान के भण्डारों से कोई हस्तलिखित प्रति । है। सेठ कस्तुरभाई सचमुच इस सदी के परम प्राप्त करना बहुत कठिन था। किसीको केाई । । जीणों द्धारक, प्रभावक पुरूष या महाजन हैं। प्रति मिले, तो वह दैवी कृपा मानी जाती थी। ऐसी अवस्था में श्रीमान् सेठ कस्तुरभाईने लाल -डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये
SR No.537867
Book TitleJain 1970 Book 67 Kasturbhai Lalbhai Amrut Mahotsav Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1970
Total Pages70
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, & India
File Size10 MB
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