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________________ ५ लाने मनिपायी. .. १८३ बार्षिक रु० ००००) तक का खर्च उन्होंने अपने सिर रक्खा है और कालरशिप में रु० ५०००) दिये हैं, अलाश उसके फरनीवर, पुलके वगैरह अंदाजन १००००) उन्होंने दिये है, इस तरह उभारता से अन देदेना और रात दिन संस्था की सेवा करना यह एक अदभूत आत्मभोग का नमूना है। का जैन साज ऐसे दृष्टान्त को देखते हुए थी अपना कतेव्य करने में पीछा हटेगा ?.. २ 'विद्यार्थी गृह' को कैसो मदद की जरूरत है? विद्यार्थीगृह में इतना खर्च करते हुए भी मि० वाडीलाल ने अपना नाम उप्समें नहीं रक्खा है । उनका आशय नामवरी का नहीं, परन्तु ज्यादा से ज्यादा सेवा कार्य करने का है । वे चाहते तो अपनी रकम में से १०-२० विद्यार्थियों का पालन करके बैठ रहते, परन्तु ४० विद्यार्थी शुरू में ही रक्खे है और ज्यादे भी रखने की इनकी इच्छा है, सार आधार नैन समाज में से मिलने वाली सहाय पर है । खर्च में It की सहाय नहीं लेना इनका निश्चय है, परन्तु विद्यार्थियों को, फीस वगैरह के लिये स्कॉलरशिप दी जाती है जिसमें प्रतिमास रु० १०००) की आमदनी की आवश्यकता है, जिसमें प्रतिमास रु. ४००) आठ साल तक मिलते रहें ऐसे बचन तो मिल गये हैं और अब ८ साल तक प्रतिमास ६००) के बचन की आवश्यकता है। ३ आप किसतरह मदद कर सकते हो ?। । - पहला रास्ता यह है कि आठ साल तक प्रतिमास ४०, ३०, २५, २०, १०, या ५ रुपे की स्कॉलरशीप आपके नामसे किसी विद्यार्थी को दी जाय । दूसरा रास्ता यह है कि
SR No.537769
Book TitleJain Hitechhu 1917 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherShakrabhai Motilal Shah
Publication Year1917
Total Pages74
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size10 MB
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