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आत्म तत्व जाने नहिं, कोटी कथन है ज्ञान; तारे तिमिर भागे नहि, जब लग उगे न भान. मैं जानुं पढ़वो भलो, पढनेसे भलो योग; राम नामसे दिल मिला, भले हि निंदे लोग. समजनका घर और है, औरोंका घर और समज्या पिछे जानिये, "राम बसे सब ठौर."
(१०) आत्म तत्वने समजे नहि त्यहां सुधी करोडो प्रकारनं ज्ञान ( सायन्स, इतिहास, खगोळ, भूगोळ, भुस्तर, भाषाज्ञान, तर्कशास्त्र, वैदकविद्या वगेरे तमाम ) हेनुं अंधकार मटाडवाने पुरतुं थतुं नथी. सूर्य-आत्मसूर्यनो उदय हृदयमां थया सिवाय अजवाळू थतां आखी दुनीआना पदार्थो अने बनावो जुदीन दृष्टिए देखाय. दृष्टि ( Point-of--view ) ज बदलाइ जाय.
(११) कबीरजीने पहेला तो एम लाग्युं के शास्त्रनो अभ्यास करवो एज ठीक छे; पछी जणायुं के अभ्यासथी तो 'योग' मार्ग सारो छे; पण छेवटे जणायुं के ते बन्ने करतां रामनामना स्मरणमां ज दील मळी गयुं ते ठीक थयु. भक्ति योगनी सुगमता अहीं वर्णवी 5. भक्तिनी खुबी न समजनारा लोको निंदा करेछे माटे कबीरजी कहे छे के, भले तेम थाओ, पण म्हने तो 'राम' साथे न एक तार जोडायो छे ए ठीक लागे छे.
(१२) समजणवाळा माणसनी दृष्टि जूदी होय छे अने वगर समजणवाबानी जूदी होय छे. समज्यो नहोतो त्यहारे हुंरामने अमुक जगाए ढुंढतो हतो, हवे समज्यो तो जणायुं के राम तो सर्व जगाए वसे छे. माटे रामनी भक्ति करवा माटे अमुक जगा रीझगई गखी शकाय ज नहि. सर्व प्राणीनी सेवा एज रामसेवा छे. सर्वमा हु अने हुंमां सर्व एवो 'एक भाव' थयो ए ज 'सेवा' छे.