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कबीर ! यह संसारको, समजावू कइ बार ? पूंछ ज पकडे भेसको, उतरा चाहे पार ! १३ मन मथुरा, दिल द्वारका, काया काशी जान; दसमें द्वारे है देहरा, तामें जोत पिलान.
- कबीरजीनां आध्यात्मीक पदनो भाग ३ जो, सन १९१२ मां 'जैनसमाचार' ना ग्राहकोने भेट तरीके आपवामां आवशे. जे कोई गृहस्थने ए पुस्तकनी १००-५०० प्रतो ल्हाणी माटे जोइती होय हेमणेन्होवेम्बर १९११ नी अंदर अंदरमा लखो जणावयु. मात्र पडतर किमत लेवामां आवशे. १०० प्रतना रु. ७); ५०० प्रतना रु. २५).
(१३) कबीरजी कहेछे के आ मूर्ख संसारने शी रीते समजावं? एसे भवरुषी समुद्रना पार जवु छे, अने ते काम माटे होडी के गायने बदले कुगुरुरुपी भेसनुं पुंछडं पकडवा इच्छेछे ! ए भेस जो एने वाडया वगर रहे तो पोपटीआ अने स्वार्थी गुरुओ नरकमां नाल्पा सिवाय रहे !
(१४) हे भाइ !तुं मथुरा अने द्वारका अने काशी अने गीरनारजी अने तारंगाजी भटकवा जाय छे, पण हुं हने हारी पासेज एबा तीर्थस्थळो लावीने खडां करुं छं छतां तुं शामाटे भटकवानी अनेसम खर्चकानी मूर्खाइ करेछे ? जो, देख ! त्हारं मन एज मथुरा छे, दील एज द्वारका छे, काया एज काशी छे, तन एज तारंगाजी मे, गो अथवा इंद्रियो एज गीरनारजी छे माटे तुं एसर्व मन-वचन अने कायाने शुद्ध कर एटले तीर्थ ज छे. त्हारा हैयाना दसमा द्वारपां जे देहेरुं छे त्यहांन परमात्मा बीराजे छे. एने शोध, शोष. आटला प्रयासे ध्यान धरीश तो परमात्मानी साथे एक तार जार जोडाशे. दशमा द्वार संबंधे विशेष हकीकत 'योग' ना जाणकार पुरुष पासेथी ज मनी शकशे.)