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४४ तारा मंडल बैठके, चंद्र बडाइ लाय; . उदय भया जब सूर्यका, सब तारा छुप जाय. कू मारग छोडा नहि, रहा मायामें मोह; पारस तो परसा नहि, रहा लोहका लोह ! पोथी पढपढ जग मुवा, पंडित भया न कोय;
अढाइ अक्षर प्रेमका, पढे सो पंडित होय. पण राममा 'रत' थयेला--राममय बनेला पुरुषो के जेओ इंद्रिोने पोताना वश राखी शके छे तेवा तो करोडोमा एकाद ज मळशे.
(७) ताराओना टोळां वच्चे बेसीने चंद्र ( के जे सूर्यन तेन उछीनुं लइने प्रकाशे छे, जेनामां पोतानुं तेज नथी ते ) आप बडाइ घणीए करे तेथी | वळ्युं ? पण ज्यहारे प्रभाते सूर्यनो उदय थाय छे के तुरत ज ताराओ छुपाइ जाय छे. तेओ पोतानी भूलने माटे पस्ताइने म्हां छुपावे छे !
'पोथां-पंडीत' नी पंडीताइ मात्र मूर्ख लोको आगळ ज चाली शके, संत अगर भक्त अगर परमात्मापरायण लोको आगळ सं झांखाझंख पडी जाय छे.
(८) जेणे खराब रस्ता छोडया नथी अने जे मायामां मोही रह्यो छे त्हेने पारसमणीनो स्पर्श हजी सुधी थयो ज नथी एम मानजो; तेथी ज ते लोढा जेवो छे. जो सद्गुरु के सद्ज्ञान के सतदेव (त्रणे एक जछे ) नो स्पर्श थयो होय तो आ दशा होय नहि. .. (९) पोथी--योथा भणीभणीने आ जगत पंडीत थवा इच्छे छे पण ज्यहां सुधी 'प्रेम' एवो अढी अक्षरनो शब्द भणायो नथी यहां सुधी खरी पंडीताइ कदी आवनार नथी. मेम एटले सार्वत्रीक प्रेम, ईश्वरी प्रेम...