SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरिगुन गावे हरखके, हिरदे कपट न जाय; आपन तो समजे नहि, ओर हि ज्ञान सुनाय. चतुराइ चुले पडो, ज्ञानको जमडा खाओ! 'भाव भक्ति' समजे नहिं, जानपनो जल जाओ! लीखना पढनां चातुरी, ये सब बातां सहेल; काम दहन, मन वश करन, गगन चढन मुशकेल. ज्ञानी गाथा बहु मिले, कवी पंडित अनेक; राम रता और इंद्रि जीता, कोटी मधे एक. . (३) हरिना गुण म्होटेथी गाया एटले कांइ भक्त थइ गया एम समजवु नहि. हृदयमांथी कपट जाय त्यहारे ज्ञानी कहेवाय. माटे वगभक्तोनो उपदेश सुणवो नहि. (४) हे 'चतुर' पुरुषो ! हमारी चतुराइ चूलामां पडो ! रहमाकं ज्ञान जहानममा जाओं ! जो हमारामा 'द्रव्यभक्ति' नहि पण 'भावभक्ति ' आवी होय तो ज हमारी पंडीताइ सफल छ, नहि तो देवता मूक्यो ए जाणपणामां ! (५) लखवू-वांचQ-चतुराइ करवी ए बधुं स्हेलु खे-- देखादेखीथी शीखाय तेवु छे. पण कामदेवने बाळी नाखयो अने मनने वश करवु तथा 'आकाशमां च्हडवू' एटलां काम खरेखर मुश्केल छे. ए काइ देखादेखीथी शीखाता नथी, ए तो जाते ज समजवानां अने जाते ज करवानां काम छे. ' आकाशमा उडवू ' एनो अर्थ भूलोकमां छतां देवलोक तरफ प्रयाण करवु ते. कल्पना शक्तिने पवित्र बनावीने त्हेनी पांखे बेसी देवलोकमां विचर अने प्रेमना सार्वत्रीक राज्यनी मीही हवा खावी ते. बीजो अर्थ एवो पण थाय के गुण 'स्थानके हडg ते; गुणस्थानक काइ देखाय एवी चीज नथी; आकाशमां च्हडवानुं ज ते काम छे. (६) ज्ञाननी वातो करनारा, कविओ, पंडीतो तो घणाए मळे .. ...
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy