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काम क्रोध मद लोभकी, जब लग मनमें खांन; तब लग पंडित मूर्ख हि, कबीर एक समान. चतुराइ पोपट पढा ! पडा जो पिंजर माहि; फिर परमोघे औरकों, आपन समजे नाहि.
(१) कबीरजी कहे छे के, उयहां सुधी मनमां काम-क्रोध-मदलोभ ए चारनी 'खाण' छे त्यहां सुधी मूर्ख अने पंडीतमां काइ तफावत समजता ना.एवो माणस भणेलो होय तो पण मूर्ख ज है; बुद्धिशाली मनुष्य कदी पोताना मूक्ष्म शरीर के जे वधु किमती छे अने जे बीजा अवतारमा पज साथे रहेनार छे तेवा मूक्ष्म शरीर. ना भोगे स्थूल शरीरनुं मायावी सुख इच्छे ज नहि.
(९) चतुराइ तो एक पोपटना भणवामां आवी छे ! बार्की कोइ चतुर छ ज नहि ! जुओ तो खरा के अभण पोपट आकाशमा उडता फरे छे अने कल्लोल करे छे, त्यहारे भणेला पोपटजी पांजरामा केद थया छे ! आ एमनुं भगतर ! अरे B. A. अने M. A. नी डीग्रीना अभिमानी भणेलाओ ! अरे सूत्रोअने संस्कृत अने ग्रंथो अने थोकडाना अभ्यासना अभिमानी पोपटजीओ ! हमे भणीभणीने शुं भण्या ? मात्र मगजने भारे मार्यु ! कारण के हृदय तो भण्डे नहि. मनना प्रणाम कोमळ थया नहि. विश्व मात्र उपर समान दृष्टि, प्रेम भावना तो शोख्या नहि. भणतरथी हमारं हृदय 'तर' थवाने बदलेविकाश पामवाने बदले उलटुं सांकडं थयुं अने हमारा पोतीका स्वार्थ सुख मेळ्यवानी वधु शक्ति हमे पाम्या, के जे शक्ति बीजा ओछा भणतरवाळाना सुखना भोगे हमने वधारे ( मायावी) सगवही लावी आपशे. आ भणतर हमने पांजरामा--संसारभाक्मां जकडी राखशे. त्हमे बीजाने शुं उपदेश करोछो, अरे विचारा पोपगमा पंडीतो ! हमे हमने तो पांजरामायी छोडवो ?