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सुन कर बैठे आंधळा, भावे त्यां भरमाव.
१४ नहि जे माणस गोळ्थी मरतो होय एने विषथी शा माटे मारवो ? माटे आपणे एने अडक सुधी होडी हंकार्या बाद कहेवु के नदीमां आ स्थळे चमत्कार थयेला छे. ए पवित्र भूमि छे. अहीं कोइ माणस डूबी मरे - आपघात करे तो मोक्षे जाय अने एटली हिमत न चाले अने फक्त पोतानी मील्कत अहीं स्नान करीने खेरीआतमां आपी दे तो देवलोकमां जाय. ते बीचारा आंधळाने पोताना आ भवना दुःखी कंटाळो आवेलो होवाथी गमे ते शीखामण मानवा तत्पर ज थशे अने आपणो बेडो पार थशे. लंटाराओए अने आंधळाए पछी शुं कर्यु ते आपणे जाणवानुं रहेतुं ज नथी, कारण एवा संख्याबंध लूटारा आपण अंध पुरुषोने ( हृदयनी आंख वगरनाओने ) हमेश आवी रीते लूटता : आव्या छे तेथी कांइ अनुभव नवो मळवानो नथी. पछी आपण ज्यहारे परमाधामीना भाला खमवा पडशे लहारे कहीशु के “ अरे ओ परमाधामी ! म्हने तुं अहीं केम लाग्यो ? हुं के जेणे गुरुदेवना कहेवाथी पेली विधवाना दिक्षा ओत्सवमां पांचसो रूपीओ खर्च कर्या हता अने पेला उधइओनी दया माटे पुस्तकोना पटारा भरनारा महात्माना हुकमथी पांच रूपीआनां पानां वहोराव्यां हत अने गुरुना संसार पक्षना बेटाने गुरुदेवनी आज्ञाथी बस रुपी - आनी कंठी पहेरावी दीधी हती तथा गुरुदेवना दर्शन करवाने चोमासा बच्चे हुं लावलश्कर लइने बीजे गाम जइ चारसो रुपीआ खचीं आव्यो हतो छतां तुं म्हने अहीं - - नरकावासमां केम लावे छे ? म्हारे ते अहीं आववानुं होय ? म्हने तो म्हारा गुरु साथै देवलोकमां लइ जवामां आवशे एवी आशाए म्हें जीगरथी पण व्हाला एवा रूपी खचीं नाख्या हता ! छतां शुं म्हारां नरकमां. लइ जाय एवां पूर्वनां कर्मे धोवायां नहि होय के ? " आनो खुला सो पर माधामी करशे के ? - हा, जे परमाधामी हशे ते अवश्य खुलासो करशे, बीजा नहि ज..