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________________ को एक ब्राह्मण मशकरा, वाको न दिजे दान; कुटुंब सहित नरके चला, साथ लिये जजमान ! १३ कबीर ! पंडित की कथा, जैसी चोरकी नाव; (१३) कबीरजी एक दातारने चेतवणी आपे छे के, हे भाइ ! तुं दातार थयो ए तो ठीक छे; दाननो गुण उत्तम छे; पण रहारु दान अयोग्य पात्रमा न जाय ते संभाळजे ! पेल्लो मश्करीउखडेल धर्मगुरु छे, हेने दान रखे देतो ! कारण के एवा एक धर्मगुरुने कोइए दान कर्यु हतुं हेतु फळ ए मळयु के, ते साधु पोताना सोबतीओने लइने नरके गयो अने साथे दातार-दान आपनाग्ने पण लेतो गयो ! गुरु कांइ एकलपेटो न होय, पोताना दातारने नरक जेवी स्हेलघामा साथे लीधा वगर रहेज नहि एवोते परोपकारी होय.माटे हे भाइ ! तुं दान करेतो 'गुण' जोइने करजे, 'वेष जोइने न करतो. . (१४) कबीरजी कहे छे के, आजकालना 'पोथा पंडीत' ना मुखथी धर्मकथा सांभळवी अने आंधळाए चोरनी वोटमा बेसवु ए बन्ने एकसरखा जोखमभया काम छे. बन्ने लोको मरजीमा आवे ते जगाए पोताना आश्रीतोने भरमावीने लइ जाय अने मरजीयां आवे तेवी व्यवस्था करे ! आ गाथा बहु समजवा जेवी छे. कोइ आंधळाने नदीपार जवु हतुं तेथी होडीवाळानी मदद मागतो हतो. एवामां अमुक चोर लोको कहेवा लाग्गाः " अमारी होडीमां बेसा; अमे हमने थोडे खर्चे अने थोडा वखतमां पार उतारीशुं." विश्वाने मुरदासजी होडीमां बेठा अने पछी पेला लूटारा होडीवाळाए मांहोमाहे विचार करवा मांडयो. एक कहेः आने लूटीने नदीमां फेंकी दइशुं ? बीजो कहेः छेकज एवं उघाई कुकर्म तो न थाय; जरा दया खाइशृं. दया. आपणे, एने आडोअवळो खेची जइशुं अने एक उज्जड जगामां जइ लूटीने त्यहां छोडी दइशुं. बीजो कहेः एम पण
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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