SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७ संस्कृतमें पंडित वदे, बहुत करे अभिमान भाषा ही के जोरसे, तर्क करे नादान. पानी तकलीफ फरीथी लेशो ज नहि; कारण के रामनी भक्ति हमने आवडी नहि तेथी हमे एकवार तो बधा विषयनी परीक्षामा नापास थइ चूक्या छो. अने नापास थयेलो विद्यार्थी जो थोडं जाणनारो होय तो बीजी वार तैयार थइने पण परीक्षामां बेसी पास चइ शके. पण हमे तो हजी विद्यार्थी अवस्थामां ज-अरे एकडीओ गीखोछो एटलामांज 'महापुरुष पंडीतराज' बनी बेठाछो माटे हमारे हवे कांइ शीखवार्नु रहेतुं ज नथी !" वाहरे पोथीकाइ ! हमेए खूब करी ! अने हरिना भक्त कबीरजी ! पींगल तथा अलंकार शास्त्र भणवाने पंडीतो पासे गया सिवाय पण त्हें खुब कल्पनाने दोडावी ! (८) जेनी पासे थोडुं नाणुं होय छे ते शरीर अने घस्नो ठाठ माठ कांई ओर ज राखे छे अने तीजोरीनी अंदरनो गठ तो बानी गणे एवो होय छे ! श्रीमंतो सफाइ राखशे पण डोळ--दंभ नहिज ज करें, तेम जेओ मात्र ‘भाषाज्ञान' पामीने पंडीत थइ बेठा छे तेओ बेचार माणसने एकठा थयेला भाळ्या के संस्कृत भाषामा के मंस्कृतमय मातृभाषामां लवारो करवा मंडी पडशे, जाणे के एना जेवा पंडीत दुनीआ भरमां छे ज नहि. आवा नादान माणसोअक्कल वगरना बाळको मात्र भाषाज्ञानना जोरथी तर्क-न्याय शास्त्रमा माथु मारे ए केवी हसवा जेवी वात छे ! भाषा ज्ञान ए मात्र एक हथीआर छे, नहि के लक्ष्यबिंदु. भाषाज्ञानमा घणा आगळ वधेला पाश्चिमात्य विद्वानो जैन अने ब्राह्मण ग्रंथोना सुंदर भाषांतर करवा छतां कदी जैन के ब्राह्मण बन्या नहि अने उला 'धर्म चीजने हांशीरुप गणे छे. हवे भाषाज्ञान एकलानी किमत | आंकवी ए विचारवंत पुरुषो पोते ज विचारी लेशे.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy