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पढें गुनें सब बेदको समझे नहि गमार; आशा लागी भरमकी, (ज्यं) करोलियाकी जाळ.
पंडित पढते बेदको पुस्तक हसती लाड; भक्ति न जानी रामकी, सभी परीक्षा बाद.
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ash asaraपी बळती होय छे; त्रांबा - रुपा नाणुं त्यज्युं हशे पण नाणाथी मळती चीजो तो अनेक प्रकारनी भोगवे छे अने व्हेनो लोभ पण असाधारण राखे छे -- एटले सुधी के पोतानुं मानेल एक बे बदाम किमतनुं पात्र पण कोइ बंधुने लेवा नहि दे; अभिमान न उत्पन्न थाय एटला माटे घर-बार अने स्त्री वगेरे छोडयुं पण अभिमान तो पहेला करतां वमणो वध्योः आम तेजस शरोरमां अनेक इच्छाओनी आग बळती ज होय छे. अने एथी बचवानुं भान घडी पण आवतुं नथी.
(६) सघळांए धर्मशास्त्रो भण्यो, पण गमारने हजी कांइ समज पडी नहि. शास्त्रोमा मनुष्यना विविध शरीरो शुं छे अने आत्माने ते केवी रीते ढांकी रह्या छे अने हेमनी खीलवट केम थाय - आत्मानुं प्रकटीकरण केम थाय ए सर्व वांची गयो, छतां हजीए दुनीआना पदार्थो अने दुनीआना भावोनो जे भ्रम रहेनी आशा तो लागी ज रही ! जाणे के करोळीआनी जाळमां कोइ जीव फसाइ गयो होय तेम आ पंडीतजी उपर पण मायाना तार आडा अने अवळा फरी वळ्या छे, वीटा गया छे, रहेने ते आटआटलं ज्ञान थवा छतां भेदी शकतो नथी.
(७) पंडीतजी - धर्मगुरु महापुरुष पंडीतराज एक वखत शाखसूत्र वांचवा बेठा. ते वखते पोथीबाई ( चोपडी ) लाड करीने इसवा ने बोल्यां के " अहो पंडीतजी ! हवे हमे परीक्षा आप