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________________ मगजनी पंडीताइ विरुद्ध हृदयनी पवित्रता. ब्राह्मन गुरु जग्तके, संतनके गुरु नाहि उलट पलट कर डूबया, चार वेदके मांहि. बेद सभी पढ पढ मरे, हरिसे नाहि हेत; माल कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे खेत ! - पढी गुनी 'पाठक' भयें, समझाया सब संसार; (१) ब्राह्मण एटले जेने लोकोए 'धर्मगुरु' तरीके मानी लीधेला छे तेवा लोको तो जगतना एटले साधारण लोकोना गुरु के अथवा जडमां सर्वस्व मानी बेठेला दुनीयादारीना लोकोने माटे ए गुरु छे. कोइ 'संत' ना ते गुरु नथी. कारण के जगतना गुरुओ तो वेदने एटले धर्म शास्त्रोने उलटपालट चुंथीने पोतानी पंडीताइ बताबी जाणे एटलं ज; एमनामां कांइ 'पवित्रता' ओछी ज छे ! मगजना गुण छे, पण हृदयना गुण नथी; माटे एवाने 'पंडीत' भले कहो, पण 'संत' के 'गुरु' न कहेशो. (२) एवा 'पोथीमांना रांगणां जेवा धर्मगुरुओ सघळां धर्मशास्त्रो भणीभणीने म्होटा पंडीत बन्या पण हजी एमना हृदयमा हरि तरफ हेतनी लागणी थवा पामी नहि; अर्थात् खरो माल जे 'भक्ति' ते तो हेमने जडयो पण नहि; ए खरो माल तो कबीरो लई गयो, अने पंडीतजी तो खेतरमा ढुंढता ज रह्या ! वीजा शब्दमा कहीए तो, आ भाषाज्ञानना पोपटीआ पंडीतो मात्र बहारने बहार ज परमात्माने शोधता फरे छे तेथी जींदगी नकामी जाय छे अने कबीराए तो परमात्माने प्रथम पोताना जीगरमां शोधी कहाडया अने यहांथी पछी आखा विश्व उपर फेलायला जोया.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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