SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एरणकी चोरी करे, करे सूइको दान; उंचा चढ कर देखता, कैतिक दूर विमान ! १० मनमांही फूला फिरे, करता हूं मैं धर्मः । क्रोड कर्म शिरपे धरे, एक न चिन्हे ब्रह्म. स्नान करन तीरथ चले, मन मेला चित्त चोर; एकही पाप नहीं टर्यो, लाध्या मन दश और. न्हावो धोवो क्या करे ? मनका मैल न जाय; मीन सदा जलमें रहे, धोवे कलंक न जाय. जाय छे अने ते असर पण कायमनी रहे छे. पण उपदेशनी असर एटली स्थीर भाग्ये ज रहे छे ए तो दळणां दळवा जेटलीज आवकनुं काम छे.. (१०) आजकाल लोको केवी जातनो धर्म करे छे ते तो जुओ ! एरणनी चोरी करीने एक सोनुं दान करेछे पछी छापरे च्हडीने जुए छे के हवे म्हाराथी स्वर्गर्नु विमान केटलंक दूर र युं छे ? ! घणाए शेठीआओअनेक अनीतिने रस्ते लाखो रुपीआनी मुडी एकठी करीने पछी थोडाक सो के थोडाक हजारन दान करेछे; पण तेथी का स्वर्ग मळे नहि. (११) मनमां फूलाय छे के हुं तो बहु बहु धर्म करुंछ ! एवो फुलणसी माथा पर कुकर्मोनो पोटलो तो वधारतो ज जाय छे अने ब्रह्मने ओळखवा प्रयत्न करतो नथी. (१२) मूर्ख माणस तीर्थस्नान करवा चाल्यो, पण मन तो मलीन छे अने चित्तडं चोर छे तेथी पाप एक पण टळवाने बदले उलटयं दश पाप लइने घेर आव्यो ! वाहरे तीर्थस्थान ! (१३) न्हाये--धोयेथी | थयुं ? एथी कांइ मननो मेल तो जुआ के हव नीतिने रस्त र
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy