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________________ दुष्ट करनी छूटे नहीं, ज्ञान ही कथे अगाध, कहे कबीर वे दासको, मुख देखे अपराध. रहेनीके मेदानमें, कथनी आवे जाय; कथनी पिसे पिसनां, रहेनी अमल कमाय. 'अभ्यासी'छु. अने निरभिमानपणे महात्मा कबीरजी उमेरे छे के, जे माणस उच्च वर्तनवाळो छे ते तो म्हारो 'गुरु' थवा लायक छे. आनुं नाम निरभिमान वृत्तिनो उपदेश ! जेवो उपदेश तेवु वर्तन ! (८) जे माणस 'अगाध' ज्ञाननी वातो करे अने ते .छता एना ( सामान्य खराब कृत्यो न सुधरे ते तो जाणे ठीक पण ) दुष्ट कृत्यो पण छूटे नहि एवा 'दास' अथवा 'गुलाम' ने माटे कबीरजी कहे छे के, एनुं तो म्हों जोवाथी पण पाप लागे ! आखा प्रकरणमा 'करणी' एटले वर्तन ( Behaviour) कथवा कर्तव्य कार्य ( Duty ) ए ज अर्थ छे, ए वात भूलवी नहि. कोइ अमुक धर्मनी क्रियाओ ( तीलक, पूजन, खमासणां वगेरे) आ शब्दथी समजवानां नथी. . (९) 'रहेणी' नामे एक मेदान छे, ज्यहां 'कथनी' नामनी एक बाइ कोइ कोइ वखत हवा खावा आवे छे. मतलब के मेदान तो एक जगाए कायम रहेवानुं छे, ते काइ बदलावानुं नथी; पण हवा खानारी जेवी कथनी तो आवे ने जाय. वीजी रीते कहे छे के, कथनी तो 'दासी' छे, ते दळणां दळयांज करे; अने रहेणी छे ते 'राणी' छे, जे हुकम कर्या करे छे. राणी एक अक्षर बोले नहि अने आंखना इसाराथी कांइ फरमाश करे ते साथे ज सेंकडो दास-दासीओ हुकमनो अमल करे छे; तेम पवित्र वर्तन कोइनामां जोवामां आवे छे के तुरव हेनी संगी छाप आसपासना हजारो माणसना मन पर पड़ी
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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