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________________ २६ जैसी करणी आपकी, वैसा ही फल ले; कूडे कर्म कमाय के, सांइयां दोष न दे. (२) राम झरुखे बैठ कर, सवका मुजरा लेत जिनकी जैसी चाकरी, उनको वैसा देत. १४ १ दूर थवानो नथी. एम तो मांलां आखी जींदगी सुधी जळमां ज रहे छे. माटे स्थूल देह धोयेथी कांइ आत्मानुं कलंक जाम नहि. आवात तदन साची छे, पण ते उपरथी कोइए एवं नथी समजवानुं के कबीरजी माणस मात्रे स्नान ज न करवुं एम उपदेश करेछे. ना; माणसे पोताना शरीरनी साचवणी माटे आहार, स्नान, निद्रा, उद्यम वगेरे जे कांड कर पडे ते विवेकपूर्वक कर ज जोइए. परन्तु कबीरजी तो मात्र एम कहेछे के स्नान करवाथी धर्म थाय छे एवी गेरसमज न धराववी.. (१४) हे भाइ ! जेवी व्हारी करणी ( वर्त्तन ) तेवुं ज फळ भोगववा तैयार था. कूडां कर्म करीने पछी नाहक परमात्माने शिर दोष न दइश. सुख-दुःखं ए मात्र सारां खोटां कर्मनां 'विपाक' छे. अहीं स्पष्ट कहे छेके, बाह्य क्रिया उपर सुख-दुःखनो आधार नथी पण करणी एटले वर्त्तन पर छे. (१) राम (रम् -- रमवुं ) -- सघळी जगाए रमी रहेलो एवो 'कर्मनो कायदो' ( Law of Cause & Effect ) बधानो हीसाब पूछे छे अने जेवी जेनी 'चाकरी' ( पब्लीक सर्वोश - परोपकारनां कामो ) तेवं ते फळ रहेने आपे छे. 'कर्म'ना कायदानी चुंगाळमांथी को बची शकतुं नथी, के रहेने कोइ उगी शकतुं नथी.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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