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________________ साधु थq कांइ रस्तामां पडयु नथी. जब लग नाता जातका, तब लग भगत न होय, नाता तोडे हरि भजे, 'भक्त' कहावे सोय. हाट हाट हिरा नहि, कंचनका नहिं पहार; सिंहनका टोला नहि, संत बिरला संसार. संत संत सब को कहे, संत समूदर पार; . अनल पंखका को एक है, पंखका कोट हजार. ३ (१) 'हरिभक्त' अथवा साधु बनवू कांइ रस्तामां पडयुं नयी. . उयहां सुधी 'जात' साथे 'नातो' रहे छे एटले के संबंध रहे छे त्यहां मुधी 'भक्त' थइ शकाय ज नहि. 'नात' ए एक संसारी जनोए उत्पत्न करेलो भेदभाव छे. ए 'भेदभाव' भक्त पुरुषने होय ज नहि. एने मन तो 'वसुधा एज कुटुंब' एम होय. आवा क्षुद्र बंधारणोनो नातों एटले संबंध न राखतां जे हरिथी ज नातो राखे ते 'साधु' पुरुष अथवा 'हरिभक्त' कहेवाय. (२) दुकाने-दुकाने कांइ हीरा वेचाता नथी; हीरा वेचनार झवेरीनी दुकानो तो थोडी ज होय छे. कंचन एटले सुवर्णना कांड पहाड होता नथी. सिंहनाटोळा फरतां नथी; सिंह तो रडयाखडयाज जोवाय छे. तेम हीरा-सुवर्ण अने सिंहनी सरखामणीमा मुकाय एवा संतो पण रडयाखडया ज जोवामां आवे छे. एनां काइ टोटेटोन भटकतां जोवामां आवशे नहि, (३) 'सव को' एटले सर्व कोइ एम ज कहे छे के ' अमे संत छीए-अमे संत छीए' अथवा 'अमारा गुरु संत छे." परन्तु
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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