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हरिजन हारा ही भला, जीतन दे संसार; हारा हरिपं जायगा, जीता जमको लार ! मुख के माथे सिल पडो ! हरि हिरदेसे जाय; बलिहारी आ दुःखकी, पल पल राम संभराय ! आपा त्यां अवगुन अनंत, कहे संत सब कोय, आपा तज हरिको भजे. संत कहावे सोय.
(५) 'हरिजन' एटले हरिनो दास अथवा विश्वव्यापक तत्व ए रुपी जे हरि त्हेनो दास एटले जगतमात्रनी सेवा एज जेनो जीवनमंत्र छे एवो पुरुष. एवो हरिजन तो ' संसार ' थी.एटले के स्थूल संसारमा मग्न रहेला मनुष्यथी हारे ज. एवानी साथे चर्चा करवा हरिजन के जेने दुनीआनां अनेक परोपकारी कामो करवाना होय छे ते मुद्दल फुरसद मेळवी शके नहि. माटे एवा पुरुषोथी तो हरिजन हारे एज ठीक छे. अने 'हारेलो' हशे ते हरि तरफ चित्त दोरवशेः जीतेलो तो जमनी तरफ जवानो. जेने संसारी जनो 'जीत' कहे छे ते तो नरकनो रस्तो छे. संसारीओ जेने निंदे छे एनामां ज प्रायः काइ माल होय छे.
(६) मुख़ना उपर म्होटा पथ्थर पजो ! कारण के सुखनी मीही केफने लीधे हृदयमांथो हरि जता रहे छे. बलीहारी तो दुःखने छे, के जे क्षणे क्षणे रामनामने याद करावे छे.
(७) सघळा संतजनो पोकारी गया छे के, ज्यहां 'आपा' अथवा 'हुँ' पणुं छे त्यहां अनेक अवगुण भर्या छे. जे 'आप'ने भजवान छोडी दइ 'हरिने भजे ते खरो संत कहेवाय. अहीं शब्दार्थ विचारवा जेवा छे. 'हे' पणानी सांकडी जेलमांची मनने मुक्त करी परमात्मतत्व के जे विश्वव्यापक छे त्हेने 'भज एटले ते भावमा जा ( भजवू = जg. )