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________________ कविता कोटी कोट है, सिरके मुंडे कोट; मनके मुंडे देख कर, ता संग लिजे ओट. मस्तक मुंछ मुंडायके, काया घाटम घोट; मनको काहे न मुंडियो, जामें सबहि खोट ? (२) गुरु लोभी शिष्य लालची, दोनो खेले दाव; दोनो डूबे बापटे, बेठ पथ्थरकी नाव. (१७) ज्ञाननी कविता बनावनारा पंडीतो कोटानकोटी छे, शिर मुंडावनारा पण क्रोडो छे. पण जे मनने मुंटे-ताबे करे हेनी ज तुं सोबत करजे. (१८) माधु-मुंछ वगेरे मुंडावीने कायान रुप बदली नाखनारा त्यागीओ मनने केम मुंडता नहि होय ? खरी खोट तो मन मुंडनारनी हे; ए खोट-ए तंगी कोइ पुरी पाडतुं नथी. . ___(१) गुरु अने शिष्यनी जोडी घणेभागे एक. सरखी ज. मळे छे. गुरु 'लोभी' होय अने शिष्य 'लालचु' - होय. आ सिद्धांत बराबर समजवा जेवो छे. जे माणस जे चीजने लायक होय ते ज रहेने मळे छे. आकर्षण ( Attraction ) ना नियम प्रमाणे समान प्रकृतिओ एकबीजाने पोता तरफ खेंचे छे. गुरु पैसानो लोभी होय के पछी ( ज्यहां अन्न-वस्त्र मागवा पहेला बमणां मळतां होय तेथी लक्ष्मीनी जरुर न रहेती होय त्यहां ) माननो लोभी होय; अने शिष्य 'लालचु' होय एटले के थोडे खर्चे के थोडी महेनते ( मात्र आ गुरुराजनी पगचंपी करवाथी के एना चेलाने दिक्षा आपवामां बे चार हजार रुपीआन खर्च करवायी के एनो गमे तेवी पावतमां पर करपाथी) स्वर्ग मजी गोपी हामीले विषय वाम ,
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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