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________________ तनको जोगी सब करे, मनको करे न कोय; मनको जोगी जो करे, सो गुरु बालक होय. मन मेला तन उजळा, बगला कपटी अंग; ताते तो कउवा भला, तन मन एक हि रंग ! १५ १६ पीळा घडीमां दीशारुपी वस्त्र एम अनेक भेख धर्या पण हजीए जीवनो भ्रम तो भाग्यो नहि ज ! कारण के हें मूरखाए 'सत्गुरु' अथवा परमात्माने बहार ज ढूंढया, पण ते तो म्हने खबर न पडे एवी रीते 'अंदर' ज हता ! - (१५) ल्यो सांभळो, करीरजीए वथेलुं मार्मिक रहस्य. तेओश्री फरमावे छे के, जेनुं 'मन' ज योगी होय ते तो 'बालक' जेवा याने राग-द्वेष रहीत - हुं' पणा रहीत होय; एवाने म्हारा. 'गुरु' मानुं. बाकी शरीरने 'जोगी' बनावनारा पाखंडी तो बार लाखने बाणु हशे रहेने म्हारी बलारात नमे छे ! रळ कठण लागे के संसारमां आवी पहेलुं कोइ दुःख वसमुं लागे एटले तुरत माथु मुंडीने. वेष पहेरी लीधो अने वन्या 'तरणतारण' ! पण पोते तर्या सिवाय 'बीजाने तारनारा' एवो खीताव शरुआतमां ज आ लोको शी पीते लइ शकता हशे ते कांइ समजातुं नथी. (१६) तन एटले शरीरने उजळु अथवा टापटीपवाळु अथवा साधुतानो देखाव करनारुं राखे अने मन तो मलीन राखे, आवा साधुडाओ खरेखर 'बगला' जेवा छे. एमना करतां तो पेला कागडा सारा के जेओ मनना मेला छे तो बहारथी शरीर पण काळं ज राखे छे, के जेथी एमनाथी कोइ उगावा पामे नहि. अने आ धूतारा साधुओए तो बहारथी साधुतानो स्वांग पहेरी अंदरनी मलीगता राखी जगतने भ्रमणाना खादामां होमवानो धंधो आदर्यो छे !
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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