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________________ माला तिलक तो भेख है, रामभक्ति कछ और। कहे कबीर जीने पहन लिया, पांचो राखो ठोर. ११ माला तो मनकी भली, और संसारी भेख; माला पेहेरे मन सुखी, तो बोहोराके घर देख ! माला मुजसे लड़ पडी, काहे फिरावे मोहे ? व जो दिल फेरे आफ्ना, तो राम मिला तोहे ! १३ भरम न भागा जीवका, अनंत धराये भेख; सत् गुरु समजा बाहेरा, अंतर रहा अलेख. १४ दोरो परोवीने बनावेली छे; माटे जो माला फेरवनारोज कपूत होय तो माळा शुं करी शकवानी हती ? (११) माळा-तीलक-मुहपति-रजोहरण ए सर्वने धीकारवानी जरूर नथी, पण ए सर्वे मेख 'छे; अने रामभक्ति-आत्मैकता ए. कंई ओर ज चीज छे. जे लोको भेख पहेरे छे त्हेमने कबीरजी कहे छे के, भला थइने पांचे इन्द्रिओने ठेकाणे राखजो, रखेने कोइनां घर मारता : (१२) माळा तो मननीज सारी; बाकी तो संसारीनी पाघडीकोट वगेरे जेम वेष छे तेमज आ पण वेष छे. छतां पण कोइने माळा पहेरवाथीज सुख लागतुं होय तो कहुंछ के, पेला वोराजीनी दुकाने जा, त्यहां घणीए मालाओ टांगी राखी छे ! . (१३) कबीरजी कहे छे के, एक दिवस माला म्हाराथी छेडाइ पडी अने म्हने ठपको आपवा लागी के, हे मूर्ख ! तुं म्हने शा माटे फेरव पे.रव करे छे ? म्हें हारुं शुं बगाडयुं छे ? फेरव त्हारा दीलने, अने पछी जो के हुँ रहने 'राम' मेळवी आपुंछु के नहि ! ... (१४) पार मगरना भेख पर्या--मडीमा भोला-पडीमा
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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