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________________ मनका मस्तक मुंड ले, काम क्रोधका केश; . जो पांचोको वश करे, तो चेला सबहि देश. माला तिलक बनायके, धरम बिचारा नाहि; माला विचारी क्या करे ? मेल रहा मन मांहिं ! मुंड मुंडावत जुग गये, अजहु न मिलिया राम; राम विचारा क्या करे ? मनके और हि काम ! काष्ट काट माला किनी, माहे पिरोया मूतः .. माला बिचारी क्या करे, जो फेरनहार कपूत ? १० (७) बीचारा वेशधारीओने चेला मेळववानो शोख बहु होय छे तेथी अनेक अनर्थ सेवीने पण चेला मेळववा दोडे छे; परन्तु कबीरजी कहेछे के, एम तो मात्र बे चार चेला मळशे पण जो हारे आखी दुनीआने चेला बनाववानी इच्छा होय तो हुं कहुं तेवो साधु बन; प्रथम मन रुपी मस्तक परथी काम-क्रोध रुपी केशने मुंडीने दूर कर. जो तुं मन अने पांच इद्रियोने वश करशे तो आखी दुनीआना जीवो हारा चेला बनशे. (८) माळा--तीलकनो देखाव तो सारो को अथवा मुहपति--रजोहरणनो देखाव पण सारो को, पण धर्मर्नु रहस्य तो विचार्यु नहि. मनमां तो मेल रही गयो त्य्हारे पछी माळा वगेरे बाह्य उपकरण बीचागं रहने शुं करी शकवानां हतां ? (९) आम माथु मुंडावता--मुंडावतां अनेक जुग वही गया पण हजीए 'राम'--परमतत्वनी प्राप्ति थइ नहि. ( ओघा--मुहपति तो मेरु पर्वत जेटला कर्या पण हजीए आत्माने चीन्यो नहि. ) मन जूदेन रस्ते भटके यहां बीचारो राम धुं करे ? (१०) माळामां कांइ जीव नथी; ए तो लाकडाने कापीने अंदर
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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