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सुमरन सुरति लगाय दे, मुखसे कछु ना बोल; बाहेरके पट देय के, अंतरके पट खोल. लेह लगी तब जानीये, कबहू छूट न जाय; जीवत हि लागी रहे, मुवा मांहीं समाय. बुंद समाना समुद्रमें, जानत है सब कोय; समूद्र समाना बुंदमें, जाने बिरला कोय !
(४) भक्ति केम करवी ते वतावे छे. प्रभु साथै एवी सुरति लगाव के म्होडेथी कांइ न बोलवू पटे. बहारनी सर्व क्रियाओ मोकुफ राखी अंदरना पडदा खोल. देहना बाह्य धर्माने विचारी आत्माना आंतरीक धर्ममां लीन था. जेम कोइ माणस जगतथी कंटाळीने पोताना घरमा ऐशी, बारणां बंध करी, पोतानी पतिपरायण स्त्री के हसमुखा बाळकोमा सुख शोध, तेमज हे भक्त ! तुं बाह्य प्रवृत्ति छोडी, इंद्रीयोनां द्वार बंध करी, अंदर प्रवेश कर रहां सुमति रुपी स्त्री के सार्वत्रीक प्रेमना विचारो रुपी बाळको साथे कल्लोल कर.
(५) परमात्मानो खरो प्रेम लाग्यो छे एम बोलनारा तो घणाए होय छे; पण त्हेनी कसोटी शी? जे माणस जीवतां सुधी तो परमात्माना प्रेममा मस्त रहे एटलं ज नहि पण मृत्युबाद पण ए प्रेमनां राज्योमा ज जाय ए ज माणस खरो प्रेमी समजवो. मतलब के खरो प्रेम समय, जगा के संजोगोथी मर्यादीत नथी होतो. ___ (६) पाणी- एक बिंदु समुद्रमा समाय ए तो समजाय एवी वात छे; पण समुद्र आखो एक बिंदुमां समाइ जाय ए समजावू मुश्केल छे. छतां ध्यानमा मस्त रहेनार पुरुष अने परमात्मा ते वेनी बाबतमा उपर मुजब ज बने छे. ध्यान धरनार मनुष्यन हृदय।काश के जे एक बिंदु अथवा बुंद समान छे रहेमां ते, परमात्माने के भाखा विषने भाली शके . पविष श्रयेला काशीम इदममा