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श्री कुरडु
चारों साधू महाराज इन कुरगडु मुनि की 'नित्यखांऊ' कहकर हररोज निन्दा करते थे । परंतु कुरगडु मुनि समता रखकर सह लेते थे । उन पर तिलमात्र द्वेष नहीं करते थे ।
वि.सं. २०६४, खासो सुह-७, भंगणवार ता. ७-१०-२००८ १०८ धर्म तथा विशेषां
कहकर उनके पात्र में थूके । फिर भी कुरगडु को बिलकुल गुस्सा आया नहीं और मन से सोचने लगे 'मैं प्रमाद में गिरा हुं । छोटा सा तप भी नहीं कर सकता, धिक्कार है मुझे। ऐसे तपस्वी साधूओं की योग्य सेवा भी करता नही हूँ। आज उनके क्रोध का साधन मै बना।'
एक बार शासन देवी ने आकर 'कुरगडु' मुनि को प्रथम वंदन किये । यह देखकर एक तपस्वी मुनिने कहा, 'तुमने प्रथम इन तपस्वी मुनियों की वंदना न करके इन तुच्छ मुनि की वंदना क्यों की ?' तब शासन देवी ने कुरगडु मुनि को स्तुति करते हुए कहा, 'मैं द्रव्य तपस्वीयों' की वंदना नहीं करती, मैंने भाव तपस्वी की वंदना की है ।
感 एक महापर्व के दिन प्रात: कुरगडु मुनि गोचरी लेकर आये और जैन आचार अनुसार उन्होंने हरेक साधू को बताकर कहा, 'आप मे से किसीको उपयोग करने की अभिलाषा हो तो लेलें ।' इतना सुनते ही तपस्वी मुनि क्रोधायमान होकर ज्यों
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-त्यों बोलने लगे और कहा, 'इस पर्व के दिन भी आप तप नहीं करते ? धिक्कार है आपको, और हमे भी प्रयोग में लेने के लिए कहते हो ?' इस प्रकार लाल पीले होकर क्रोध से 'हाख यूं
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आत्मनिंदा करते हुए पात्र में रहा आहार निःशंक से
प्रयोग करने लगे और शुक्ल ध्यान में चढ़ कर तत्काल केवलज्ञान पाया। देवता तुरंत दौडे आये और उनको सुवर्णसिंहासन पर आरुढ कराकर केवलज्ञान महोत्सव मनाने लगे ।
达 चारों तपस्वी मुनि अचरज में पड गये और 'अहो ! यह सच्चे भाव तपस्वी हैं। हम तो सिर्फ द्रव्य तपस्वी ही रहे । वे तैर
गये ! आह ! धन्य है उनकी आत्मा को ।' एसा कहकर केवलज्ञान कुरगडु मुनि से क्षमापना करने लगे । त्रिकरण शुद्धि से उनकी सच्चे भाव से क्षमापना करने से उन चारों को भी केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।
प. पू. सा. श्री वि४य अमृत सूरीश्वर म. सा. ना पट्टधर પૂ. આ . શ્રી વિજય જિનેન્દ્ર સૂરીશ્વરજી મહારાજની પ્રેરણાથી જૈન શાસન ૧૦૮ ધર્મકથા વિશેષાંક ને હાર્દિક શુભેચ્છા
શ્રી હાલારી વિશા ઓશવાળ એ. મૂ. તથા
8888888 चैन संघ - अश्वेश्वर नगर 88888888
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