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________________ वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, भंगणवार . त७-१०-२००८ .१०८ धर्म था विशेषis ।'जैसी दृष्टि ऐसी सृष्टि' - यह लोकोक्ति ऐसी आत्माओं के मानस का प्रतिबिम्ब रखती है। राजा ने निर्मला को मिलने के लिये नयी तुक लडायी। उसने खास काम बताकर मोदी को एक सप्ताह के लीए बाहरगाँव जाने का आदेश दिया।धर्ममित्र ने जब निर्मला को बहारगाँव जाने की बात कही तब चतुर ऐसी निर्मला राजा की मनोभावना पहचान गयी उसने जाते समय पति के सम्मुख अथ से इतितक सर्व हकीकत कह सुनाई। धर्ममित्र को निर्मलाता की पवित्रता, दृढता तथा धीरता के प्रति श्रद्धा थी। वह बाहरगाँव गया । घर के दास दासीयों को निर्मलाने सावधान रहने की सूचना दे दी। राजा ने दूसरे दिन खास व्यक्ति द्वारा गुप्त संदेशा भेजा, 'आज सायं राजाजी आपके यहां आनेवाले है ।' निर्मला पहले से ही जानती थी कि ऐसा कुछ होगा । उसने राजा के योग्य सब तैयारीयाँ करवाई। प्रजा के पालक माने जाते राजा के दिल में पाप भावना का अंधेरा ज्यादा गाढ़ बना । सांय गुप्त रुप से मोदीके घर में अकेला घूसा । निर्मला ने राजाजी के आतिथ्य के लिये सब तैयारी कर दी थी। राजा एकांत चाह रहा था। निर्मला के देहसौन्दर्य के पीछे पागल बने हए राजा को आज कोई होशन था। निर्मला के साथ एकांत भोगने के लिए बावला बना था। तुंरत राजा सत्तावाही आवाज में बोला, 'कौन है यहाँ ?' 'जी हुजूर मैं हूँ' कहती हुई दासी हाजिर हुई । राजा ने पूछा, 'यह सबथाल किसने भेजे है?''मालिक! सेठानी ने।' 'कहाँ है तेरीसेठानी' राजाने पूछा। दासी ने कहा, 'खंदाविंद! आप नामदार के स्वागत की योग्य तैयारी करने के लिए...' राजा ने समझा, अभी थोड़ी देर में संदर श्रृंगार सज-धज कर निर्मला वहां आयेगी। इतने में राजा के लिये पेय चीजें हाजिर हुई।-'१५-२० महामूल्य प्यालों में केसरी दूध रखा हुआ था । राजा प्याला उठाकर दूध देखने लगा।' दूसरा, तीसरायों प्याले उठाकर देखने लगा पर उसे लगा कि हरेक प्याले में एक ही चीज थी। उसने चखकर देखा की कोई भी प्याले में अन्य पेय न था । राजा ने दासी को हुक्म दिया, 'जातेरी सेठानी को बुलाला।' शीघ्र ही निर्मला पास के कमरे से वहाँ आपहुंची। उसका अनुपम तेजस्वी देहलावण्य देखकर राजा की विकारी दृष्टि में यह तेज असह्य बनता जा रहा था । पवित्र तथा सत्त्वशाली निर्मला की भव्य देहलता, तेजपुंज मुखाकृति और मधुर स्मित प्रजापाल को मुर्छित बनाने लगे। थोडी देर चुपकीदी छा गई। मौन तोडा । कुछ श्वास धोंते हए मीठे शब्दों में हँसते वह बोला, 'यह सब क्या खेल W A " . . निर्मला के आदेश अनुसार घर के नोकर सुवर्णजड़ित थाल में एक के बाद एक व्यंजन परोसने लगे। महामूल्यवान कटोरों में सुंदर गुलाबजामून परोसे । राजा के मुख में पानी छूटा और मन से समझा कि . M खास मेरे लिए ही मेरी प्रियतमा ने व्यंजन तैयार किये हैं। भोजन प्रारंभ करने से पूर्व हरेक मीठाई थोड़ी थोड़ी खाई हुई तथा किसीकी झूठी की हुई मालूम - पड़ी। "किसे आप खेल कह रहे हो ?' निर्मला ने हृदय के . भावों को गूढ रखकरछोटा सा जवाब दिया। . 'क्यों ! इतना नहीं समझा जा सकता ?' "प्रजापालने दुबारामीठी आवाज में कहा। निर्मला अपनी चाल में थी। मार्ग भूले हुए राजा को राह पर लगाने का मौका उसने जानबुजकर खड़ा किया था
SR No.537274
Book TitleJain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2008
Total Pages228
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size11 MB
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