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निर्मला
वि.सं. २०६४, मासो सुद-७, भंगणार . .७-१०-२००८ . १०८ धर्म या विशेष
। उसने व्यंग में जवाब दिया: 'मालिक ! समझ में आता है वह नहीं समझ सकती और नहीं समझ में आता हैं वह समझ सकती हूँ' राजा मोदी की स्त्री में रही हई गजब की चालाकी प्रथमबार देखकर चकित होगया।रुप के साथ चतुराई के तेज का मिश्रण देखकर वह दंग हो गया। ऐसी चकोर स्त्री की वाणी मेरही गूढता को समझने के लिए उसने खूब कोशिश की। अंत मे चिढकर वह बोला : 'यह किसीकी खाई हुई झुठी मीठाई यहाँ क्यों रखी है ? मैं क्या यहाँ कीसीकी झठन खाने आया
है?'
रखा है? एकहीप्याले में सबसमासके ऐसाथा, तोसबप्याले बेकार क्यों बिगडे ? नरम स्वर में राजा ने हृदय की गुत्थी बताई।
निर्मला जवाब देने के लिये तैयार थी। राजा की सुध-बुध खोयी हुई आत्मा को ठिकाने लगाने के लिये सावधान थी। उसने स्पष्टता की, महाराज! ये प्याले बिगाड़े परंतु उसकी किंमत क्या है? प्याले बिगड़े वह आपसमझ सके परंतु आपके करोड़ों-अरबो की संपत्ति से भी अधिक मूल्यवान यह मानवभव बिगाड़ने के लिये तैयार हुएहो; इसका क्या ? अलग अलग रंग के प्यालों में चीज तो एक ही थी. यह आप जान सके; तो रूप-रंग या देहाकृति से अलग अलग मानी जाती स्त्रियों में चीज तो एक ही है; फिर भी आप इस प्रकार पागल बनकर अधम मार्ग पर जाने के लिये तैयार हुए हो- यह आपके जैसे नवपुंगव राजा को कलंकरूप अपकृत्त नहीं है क्या ? आपके अंधेपन को टालने के लिए ही मैंने यह सब किया है। इसके सिवाआपके अंतर्चक्षपर से यह मोह का आवरण किसी भी प्रकार सेहट सके ऐसानथा।'
'महाराज ! इसमें नया क्या है ?' आप यहाँ किसलिए आये हो ? यह मै और आप ही जानते हैं । परायी झुठन को अपवित्र करनेही आप यहाँ पधारेहो।अबयहा कहाँ अनजाना है? निर्मला ने मोहक लेकिन वेधक जबान में राजा कोस्पष्ट शब्दो में सुना दिया। .
उत्तर सुनकर राजा हक्का बक्का रह गया। उसने नहीं सोची हुई परिस्थिति यूं सहसा खडी हो गयी, वह विचारमग्न बना । निर्मला ने राजा को कहा, 'राजन् ! आप प्रजा के मालिक हो, प्रजा के पालक पिता हो । प्रजा आपके पुत्र-पुत्री रुपी संतति है। प्रजा के शील,प्रजा की पवित्रता और उसका धर्म- इन सबके रक्षक आप, आज आपकी पुत्री समान कही जाऊं ऐसी'मेराशीलधन लूटने आप यहाँ आये हैं; यह आपके जैसे प्रजापालक को लांछन रूप नहीं है? आपके जैसा पिता, मोदी की झूठन जैसी मुझे,-सुनकर मोहवश बनकर अकार्य करने के लिये आप तैयार हुए हो- यह समझ में आता है, लेकिन आप जैसे नहीं समझते यह आश्चर्य जैसा
निर्मला जैसी सुशील सती स्त्री के दृढतापूर्वक का शब्द राजा के अंतर को प्रकाशित कर गये। उसकी अज्ञानत के पटल दूर हुए और तबसे उसका जीवन राह बदल गया | खराबे में चढ़ी अपनीजीवन नैया के राह पर लाकर अपने लि मार्गदर्शक गुरु बननेवाली मोदी की स्त्री निर्मला के किये हा अनन्य उपकार को राजा प्रजापाल जीवनभर कदापि न भूव
पाया।
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वह वापिस लौटा सदैव के लिये ऐसे अकार्य से धन्य होनारीशक्तिकीपवित्रताको
वाकई में ऐसीपवित्र नारी, नारायणी है।
राजा के दिल में ये शब्द आरपार होगये।। उसके बंध विवेक - चक्षुखुलने लगे। उसने फिर से पूछा, 'इन विविधरंगी कीमति कटोरों में एक सा दूध क्यों थोडाथोडा |