SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्मला वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, मंगलवार . .७-१०-२००८.१०८ धर्मथा विrs नहीं। जा प्रजापाल के राजकुल में मोदी धर्ममित्र का चलन था । धर्म मित्र प्रामाणिक व्यापारी थी । राजदूत में महारानी से लेकर एक सामान्य दासी को भी उसकी दुकान में ठगा जाने का भय नहीं था। गाँव में भी धर्ममित्र का नाम आया तो उसके माल या भाव के लिये किसीको कुछ पूछने की जरुरत नहीं । राजा के मोदी की प्रामाणिकता के लिये यदि कोई प्रेरणामूर्ति थी तो वह धर्ममित्र की सुशील पत्नी निर्मला थी। निर्मला रुप रुप का अंबार रूपी रति का अवतार थी, फिर भी उसके देह सौन्दर्य के पीछे आत्मा का सौन्दर्य अनुपम था । स्त्री शरीर का शीलहीन सौन्दर्य अवश्य विकृत पुरुषों के संसार के लिये श्रापरुप है लेकिन यदि उस सौन्दर्य के साथ सुशीलता भरी पडी हो तो वह स्त्री के शरीर की महामूल्य सम्पति है। नाई की जीभ पर ताला न था। आँखो का चमकार करते हुए बात का मुरमुरा रखा । राजा के निकट उस समय ऐसे हीखुशामतखोरों के सिवा अन्य कोई भीनथा । सबने नाई की बात में हामी भरी। राजा का चंचल मन पल भर में विचारों वे झुले में झुलने लगा । जीवा विकार का विष बढ़ाने लगा 'अप्सरा'।हुजूर! ऐसा रुपतोजीवनभर में देखा नहीं होगा। नाई को बोलने की कला किसीसे सीखनी नहीं पड़ती है। राजा की मनोवृति में विकार का जहर यो धीरे धी घुसता गया।''ऐसी सुन्दर स्त्री मेरे मोदी के यहाँ । एक बारत उसे देख ही लेनी चाहिये, और इसके बाद उसकी ताकत भी क्या है कि मेरी 'हाँ' में 'ना' कह सके?" राजके मुँह में पानी आ गया है ऐसा जानकर मौका पाकर जीवा नाई कहा करता था कि 'मालिक! ऐसा स्त्रीरल तो आपके राजमहल में ही शोभा देगा । कौए के कण्ठ में मोती की मालान होवे। हीरे का हारतोराजा के गले में ही शोभेगा।। राजा ने मोदी की स्त्री को लालायित करने के पेंत प्रारंभ कर दिये । अपने खास दास-दासियों द्वारा कीमति वस्तु निर्मला को वह उपहार रुप भेजने लगा । शाणी निर्मल राजा की बूरी भावना पहचान गई । ऐसे हृदयहीन राजवी की मेहरबानी भी अग्नि की ज्वाला के साथ खेलने समान है, वह तुरंत समझ गयी। अपने महामूल्य शीलधन की रक्षा के लिए वह सजग थी। अवसर आने पर बल के बजाय अक्ल से काम . लेने का उसने निश्चय किया। • हमेशा भेजे जाते उपहार निर्मला २. आनाकानी बगैर स्वीकार लेती है ऐसा जानने के C. बाद राजाने तय किया : 'पंछी जरुर जाल में आ गया है ।' कारण - विकारवश आत्माओं की सृष्टि, उनके अपने मानसिक, विकारों की प्रतिक्रियारूपही लगती है। प्रजापाल की राजसभा में कई हजूरिये थे, उसमें एक विघ्नसंतोषी नाई था । अयोग्य मनुष्य का संसर्ग भी अच्छे मनुष्यों के जीवन में दाग लगानेवाला बनता है । प्रजापाल राजा के लिए भी ऐसा ही हुआ। . एक बार राजा के यहाँ गाँव की गपशप चल रही थी, उस समय जीवा नाई ने धीमे से बात . रखी, 'मालिक ! कहता हूँ, शायद ज्यादा मान जायेगा फिर भी हुजूर के समक्ष कहने मे क्या शर्म?' . हमारे पूरे राज्य में मोदी के घर में जैसा मनुष्य है वैसा तो कोई स्थान पर मिलेगा ही नहीं। अरे खद मालिक के अंतपुर में भी
SR No.537274
Book TitleJain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2008
Total Pages228
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy