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________________ शियलवती वि.सं. २०६४, मासो सुद-७, भंगणवार . .७-१०-२००८ . १०८ धर्म sथा विशेषis बहुत दिन रहने से अशोक में से 'अ' निकल गया और मंत्री और हरेक बार भवतु शब्द कहा। इस प्रकार राजा का भोजन शोक रुपबन गया। पूर्ण हआ। बाद में तांबुल वगैरह देकर मंत्री अजितसेन राजा के एक माह बीतने पर भी अशोक मंत्री वापिस न लौटा चरणों में गिरा । राजा ने मंत्री को पूछा: 'इस प्रकार रसोई कैसे तो कामांकुर नामक दूसरा मंत्री वैसी ही प्रतिज्ञा लेकर आया। तैयार हो गयी? मंत्री ने कहा, उस कमरे में मुझे प्रसन्न हुए चार शियलवती ने उसके पास से भी अर्धलक्ष्य द्रव्य लेकर उसी यक्ष हैं - वह देते है। राजा ने कहा, वे हमें देदो, क्योंकि हमें खड्डे मे डाल दिया। तत्पश्चात एक माह बाद ललितांग नामक नगर के बाहर जाना पड़ता है तब वहाँ भोजन माँगे तो वचन एक तीसरा मंत्री आया। उससे भी अर्धलाख द्रव्य लेकर उसी मात्र में हो जाये।' राजा के आग्रह से मंत्री ने उन्हें देना स्वीकृत खड्डे में डाल दिया । चौथे माह रतिकेली नामक एक मंत्री किया। आया, उसको भी सबके भांति लक्ष द्रव्य लेकर एक खड्डे में तत्पश्चात राजा से छिपाकर गुप्त ढंग से चारों को डाला । इस प्रकार चारों मंत्री चतुर्गतिरुप संसार दुःख का खड्डे में से निकालकर एक बड़े टोकर में बंद करके अच्छे वस्त्रों अनुभव करने लगे। से ढककर राजा को अर्पण करते हुए कहा 'इस यक्ष का स्वरूप कालक्रमानुसार राजा शत्रु पर विजय पाकर वापिस किसीको दिखाना नहीं । राजा ने टोकरे को रथ में छोड़कर लौटा और बड़े उत्सव के साथ उसने नगरप्रवेश किया । उस स्वयं पैदल चलकर रास्ते में पवित्र जल छिड़कवाते हुए दरबार समय उन मंत्रियो ने शियलवंती को कहा, 'हे स्वामीनी ! हमने में लाया । अंतपुर की स्त्रियाँ पीछे पीछे चलती हुई यक्ष के गुण आपका माहात्म्य देखा, हमारे कृत्य का फल भी भोगा, अब गाने लगी। इस प्रकार उन्हें दरबार में लाकर एक पवित्र स्थान हमें बाहर निकालो।' पर रखवाये और प्रात: होते ही भोजन के समय बड़ी पवित्रता शियलवती ने कहा, 'जब मैं भवतु (हो) कहूँ तब से राज ने पूजा की । राजा ने विज्ञप्ति की, हे स्वामी ! पकवान आपको 'भवतु' कहना पड़ेगा । मंत्रियों ने वह स्वीकृत किया। तथा दाल-चावल दीजिये । इसलिये उन चारों ने 'भवतु' तत्पश्चात् शियलवती ने अपने पति को कहकर राजा को कहा लेकिन कुछ हुआ नहीं। इस कारण राजा नेटोकराखोला भोजन का आमंत्रण दिया । अगले दिन सर्व भोजनसामग्री तो उसमे पिशाच के समान चार मनुष्य देखने में आये । दाढी, तैयार करके खड्डेवाले कमरे में रखी । राजा के भोजन करने कुछ मूछ व सिर के केश बढ़ गये थे। मुख गल गये थे। क्षुधा से आने के दिन रसोईघर में अग्नि भी जलाया नहीं और जल के कृश हो गये थे और नेत्र गहरे धंस गये थे । राजा ने उनको स्थान पर जल भीरखानहीं। और कोई भीभोजन करने पधारे पहचाना तो हँसमुखे मंत्री कौए की तरह उपहास के पात्र बने। तब उसने कोई भोजन सामग्री देखीनहीं, उससे आश्चर्य पाकर राजा ने हकीकत पूछी तो उन्होंने सर्व वृतात बताया। इससे वह बैठा । शियलवती स्नान करके कमरे में जाकर पुष्पमाला राजाआश्चर्यचकित होकर मस्तिष्क हिलाने लगा। शियलवती हाथ में रखकर धूप-दीप करके बैठी और बोली, 'राजा 1. का शील, उसकी बुद्धि का प्रकाश और पुष्पमाला भोजन करने आये है इसलिये नाना प्रकार के ८मुरझायी नहीं इसका कारण राजा की समझ में पकवान भवतु (हो जाये) ।' ऐसा बोलने पर - है. आया। इस कारण शियलवती की प्रतिष्ठा लोगों चारों मंत्रियो ने उच्च स्वर में कहा, 'भवतु ।' 4. मे बढ़ गई। तत्पश्चात वे दम्पती क्रमानुसार दीक्षा तत्पश्चात मोदक वगैरह सामग्री उस कमरे में से बाहर लेकर मृत्यु पाकर पाँचवें देवलोक में गये और लाई गयी। फिर घृत, सब्जी वगैरह के लिए भी वैसा ही कहा | क्रमानुसार मोक्ष भी प्राप्त करेंगे। iii १८४
SR No.537274
Book TitleJain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2008
Total Pages228
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size11 MB
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