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श्री भोगसार
वि. सं. २०१४, मासो सुह-७, भंगणवा२ . .७-१०-२००८ .१०८ धर्म या विशेषां
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कांपिल्यपुर में भोगसार नामक बारह व्रत को II को याद किये बिना संसार का मोह कैसे नाश पाये ? धारण करनेवाला श्रावक रहता था । उसने श्री
मिथ्यात्व में मगन बने मूढ़ पुरूषो को धिक्कार है, जो शांतिनाथ भगवान का प्रासाद बनवाया था। वहाँ वह
सांसारिक इच्छा पूर्ण करने के लिये देव-देवीयों को हमेशा किसी भी प्रकारकी लालसा बगैर भगवान की
भजते हैं और मानते है कि मेरी इच्छा इन देवों ने पूर्ण तीन काल की पूजा करता था। एक बार उसकी स्त्री
करी । यह मिथ्या भ्रमणा है । ऐसा सोचकर श्रेष्ठि ने का आयुष्य पूर्ण हो जाने से मृत्यु हो गइ । तब ' स्त्री के
अपने मन में जरा भी विचिकित्सा धारण नहि की। बिना घर का निर्वाह चलेगा नहीं' ऐसा मानकर उसने
धन अभाव के कारण श्रेष्ठि खेती करने लगा। उसकी दूसरी स्त्री से ब्याह किया । वह स्त्री स्वभाव से अति
स्त्री हमेशा पकवान वगैरह मनपसंद भोजन करती है। चपल थी इस कारण उसने गुप्त ढंग से धन इकट्ठा
और श्रेष्ठि को चौरा वगैरह कुत्सित अन्न देती है। इस करने लगी और अपनी इच्छानुसार खाने-पीने लगी।
कारण श्रेष्ठि तो मात्र नाम से भोगसार ही रहा परंतु क्रमानुसार श्रेष्ठी का सर्वधन खत्म हो गया इससे वह ।
उसकी रखी तो वाकई भोगवती बनी। यथाक्रम कुलटा दूसरे गाँव में रहने गया । परंतु दोनों प्रकार की
बनी और परपुरुष के साथ यथेष्ट भोग भोगने लगी। जिनपूजा (द्रव्य पूजा तथा भाव पूजा) वह भूलता न
एक बार शांतिनाथ प्रभु के अधिष्ठायक देव ने सोचा, था। उसमें भी वह भावपूजातोहंमेशा त्रिकाल करता।
'इस समय अनेक लोगों के मन को आनन्द देनेवाली एक बार उसकी स्त्री तथा अन्य कोई लोगों ने
और उदार ऐसी, धूपादिक सगंधी द्रव्यो से भगवान की उसे कहा 'हे श्रेष्ठि ! निग्रह या अनुग्रह के फल को न
पूजा होती क्यों नहि है?' तत्पश्चात अवधिज्ञान के देनेवाले वीतराग देव को आप क्यों भजते हो? उसकी
उपयोग से भोगसार की दरिद्रता और उसका कारण भक्ति करने से उलटा आपको प्रत्यक्ष दारिद्र प्राप्त
जानकर उसने सोचा, 'यह श्रेष्ठि जिनेश्वर का पूर्णभक्त हुआ। इसलिये हनुमान,गणपति, चण्डिका, क्षेत्रपाल
है और आज उसे चौरे की फसल काटने का समय वगैरह प्रत्यक्ष देवों की सेवा करो जिससे वे प्रसन्न होकर
आया है; और उसकी स्त्री कुल्टा बन गई है और आज वह
श्रेष्ठी पर जरा सा भी भक्तिभाव रखती नहीं है सो मुझे इस तत्काल मनचाहा फल दे।
श्रेष्ठि का सांनिध्य करना चाहिये ।' एसा सोचकर देवता ने इस प्रकार की सुनते ही श्रेष्ठिनै विचार किया,'अहो!
श्रेष्ठि के भानजे का रूप लिया और मामा के घर जाकर मामी ये लोग परमार्थ से अनजान है और मोहरूपी मदिरा का पान
को प्रणाम किये व पूछा, 'मेरे मामा कहाँ है ? ' मामी बोली, किया होने के कारण ज्योंत्यों बोल रहे है। पूर्व जन्म में न्यून
__ 'तेरे मामा खेत में गये है, वहां हल जोत रहे होंगे।' यह पुण्य के फल भोगने की स्पृहा करते है । यह सर्व .
६. सुनकर वह खेत में गया । वहाँ मामा ने पूछां 'तू क्यों
. मिथ्यात्व की मूढता की चेष्टा है । यहाँ हनुमान,
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आया है ?' भानजे रुपी देवता बोलां 'मैं गणेश वगैरह देव क्या निहाल कर देते हैं। जैसा
सहायता करने आया हूँ।' मामा ने कहा, 'घर बोलो वैसा ही काटो, इसमें उनका कोई दोष नहीं है ।
जाकर खा ले।'भानजा बोला, 'हम साथ ही खायेंगे परंतु संसार के दुःखो का विस्मरण करने के लिये परमात्मा
| ।' मामा ने कहा, 'आज खेत में कटाई का काम चल रहा है, का स्मरण अहर्निश करना चाहिये, क्योंकि वीतराग के गुणो | जिससे बडी देर हो जायेगी और तू बालक है तो भुख कैसे
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