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शियलवती
वि.सं. २०६४, खासो सुह-७, भंगणवार ता. ७-१०-२००८ १०८ धर्म अथा विशेष
के बीच परस्पर हास्यवार्ता करनेवाले मंत्रियो को कहा, 'हमारे अजितसेन मंत्री की पत्नी का सतीत्व वाकई बहुत बढ़िया है।' यह सुनकर अन्य एक अशोक मंत्री बोल उठा, 'महाराजा ! उनको इनकी स्त्री ने भरमाया है। स्त्रियों में सतीत्व है ही नहीं । कहा है कि एकांत या समय मिले नहीं तब तक ही स्त्री का सपना है। इसलिये यदि परीक्षा करनी हो तो मुझे वहाँ भेजो ।' अशोक नामर हँसी उडानेवाले मंत्री को आधा लाख द्रव्य देकर राजा ने शियलवती के पास भेजा।
शियलवती,
जंबूद्वीप के नंदन नामक नगर में रत्नाकर नामक एक श्रेष्ठी रहता था। उसको पुत्र न था। इस कारण उसने अजितनाथ भगवंत की शासनदेवी अजितबाला की आराधना की, जिससे अजितसेन नामक पुत्र हुआ। वह बड़ा होकर शियलवती नामक स्त्री से ब्याह किया। शियलवती ने शकुन शास्त्रादि का अभ्यास किया था। शकुन शास्त्र अनुसार व्यापार करने से अनेक प्रकार से द्रव्य बढ़ता जाता था जिससे वह घर की विशेष चहेती और अधिष्ठात्री बन चुकी थी । उसका स्वामी अजितसेन बुद्धि बल से राजा का मंत्री बना था ।
एक बार सरहद के राजा पर चढाई करने जा रहे थे तब अजितसेन को साथ चलने की आज्ञा दी। मंत्री ने शियलवती को पूछा, "प्रिया ! मुझे राजा के साथ जाना पड़ेगा, तू अकेली घर कैसे रह सकेगी ?' कारण चित्र का शील तो पुरुष समीप रहने से ही रहता है। जो स्त्री प्रोषितभर्तृका (जिसका पति परदेश गया हो ऐसी) हो तो वह उन्मत्त गजेन्द्र के समान कई बार स्वेच्छा से क्रिडा करती है।' पति के ऐसे वचन सूनकर नेत्र में अश्रु लाकर शिलवती ने शील की परीक्षा बतानेवाली एक पुष्प की माला स्वहस्त से गूंथ कर पति के कण्ठ में आरोपित की और बोली, 'हे स्वामी जब तक यह माला मुरझायेगी नहीं तब तक मेरा शील अखण्ड है ऐसा मानना । ' तत्पश्चात मंत्री निश्चीत होकर राजा के साथ बहारगाँव
गया।
شند
थोडे दिनों के बाद राजा ने मंत्री के
कण्ठ में न मुरझाती हुई माला को देखकर उसके
बारे में अपने आदमियों को पूछा, तब उसकी स्त्री के
सतीत्व का वर्णन किया । बाद में कौतुकवश राजा ने राजसभा
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अशोक उज्जवल भेष धारण करके नगर में गया। वहाँ कोई मालन स्त्री को मिलकर कहा, 'तू शियलवती के पास जाकर कह कि कई सौभाग्यवान पुरुष तुमसे मिलने की इच्छा रखता है।' मालन ने कहा, 'इसके लिए द्रव्य अधिक चाहिये क्योंकि धन ही मनुष्य का वशीकरण है ।' अशोक ने कहा, 'यदि कार्य सिद्ध हो जायेगा तो अर्ध लक्ष द्रव्य दूंगा।' इससे मालन संतुष्ट होकर शियलवती के पास गई और शियलवती को सब वृतांत बताया। शियलवती ने मन से सोचा, 'परस्त्री के शील का खण्डन करने की इच्छा रखनेवाला यह पुरुष अपने पाप का फल भोगे।' ऐसा मानकर उसने मालन की बात स्वीकार कर ली और मालन से अर्धलक्ष द्रव्य माँगा । मालन ने वह देना स्वीकार किया। इसलिये मिलने का दिन तय किया। तत्पश्चात शियलवती ने अपनी बुद्धि से विचार करके घरके एक कमरे में कुंए जितना गहरा खड्डा खुदवाया। उसके उपर निव बिना की चारपाई रखकर उपर चादर बांधकर ढिला रखा। मिलने का समय होते ही अशोक मंत्री अपनी आत्मा को कृतार्थ मानकर अर्धलक्ष्य द्रव्य लेकर वहाँ आया। पूर्व से सिखाई हुई
दासी ने कहा, 'लाया हुआ द्रव्य मुझे दीजीये और अन्दर चारपाई पर जाकर बैठो।' अशोक अर्ध लक्ष्य द्रव्य देकर जल्दी अंधेरे कमरे में जाकर चारपाई पर जाकर बैठा, संसार में बहुकर्मी प्राणी गिरती हैं उस प्रकार तुरंत ही खड्डे में गिरा।
खड्डे में पड़ा अशोक जब क्षुधांतुर होता तब उपर से शियलवती खप्पर पात्र में अन्नपानी देती थी और इस प्रकार