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________________ VULNENIENCJIONENCSENEMAMMMMMMS तिलक के लिये बलिदान श्रीन शासन (नधर्मना प्रतापी पुरुषो)विशेषis .वर्ष : १५. ८ .ता. २६-११-२०२ अ. धर्मसत्ता के सामने विजयी बना हो। मेरी नम्र विनंति है के लिए। यदि बलिदान देना पडे तो हमें भी मंत्रीश्वर के कि आपऐसी आज्ञान करे। पीछे तैयार रहना होगा। अजयपाल:-मुझे तेरी सलाह की जरूरत नहीं है। सभीएक स्वर में...तिलक अमर रहेगा। मेरी आज्ञा है। य दरखना कल दरबार में आओ तब तुम्हारे प्राणों से भीप्यारा,यह तिलक हमारा। मस्तक पर यहलिक नहीं होना चाहिये। (दृश्यतीसरा) कपर्दी : - महाराजा! क्षमा करें! यह तिलक नहीं (राज दरबार जमा हुआ है। थोडी ही दूरी पर एक मिट सकेगा। बडे कढाए में तैल उबल रहा है) अजयपाल :- मंत्रीश्वर ! तिलक नहीं मिटाया तो धनदास:- महाराजा! मैने जो कहा था वह बात समझलेना, तुम्हारे सिर पर मौत घूम रही है। तुम्हें उबलते सत्य निकली न! कपर्दी को अपने धर्म का झुठा अभिमान हुए तेल में तलाया जाएगा। है। उसे ऐसी सजा होनी ही चाहिए। यदि आप इस प्रकार (दृश्यदूसरा) कठोर नहीं बनोगे यो कल प्रजा भी आपकी आज्ञा का (नगर के सभी महाजन इकठे हुए हैं..बैठक चल रही है) पालन नहीं करेगी। धर्मदास :- आप सभी को पता ही होगा कि अजयपाल :- मुझे लगता हैं कि इस कढाई को महाराजा अजयल ने मंत्रीश्वर को तिलक मिटा देने की देख कपर्दी डर जाएगा और अपनें तिलक को मिटा देगा। आज्ञा की है औ तिलक न मिटाए तो तैल में तलने की (जैनंजयति शासनम, तिलक अमर रहो' # आज्ञा दी है। के गगनभेदी नारों के साथ अनेक नवयुवकों के साथ महेन्द्र :- यह राजा अजयपाल अत्यंत ही क्रुर है। कपर्दी मंत्री का राजदरबार में आगमन होता है। सभी के राजसत्ता को पाने के लिए उसने अपने काका कुमारपाल मस्तक पर तिलकलगा हुआ है।) को जहर देकर मा डाला था और अबधीजनों के ऊपर ___ मंत्री ने आकर राजा को प्रणाम किया। उसके बाद उसने अपना हथिवार उठाया हैं। यदि हम चूप बैठे रहे तो उसने अपना आसन ग्रहण किया। म. पता नहीं कल कैरो भयंकर आज्ञाएँ भी हो सकती है ? अजयपाल:- मंत्रीश्वर! क्या तुम मेरी आज्ञा भूल सुरेन्द्र:- रन्तु इस राजसत्ता के आगे हमारा कितना गए हो? इस तिलक को तुम मिटा दो, अन्यथा तुम्हारा चल सकेगा? इसके बजाय तो राज दरबार में जाते समय जीवन मिट जाएगा। तिलक मिटा कर जाय तो इसमें कौनसानुकसान हो जाने कपर्दी:-राजन्! यह तिलक नहीं मिटेंगा। वाला है ? अजयपाल :- एक छोटे से तिलक के लिए मेरी देवेन्द्र:-से कायर विचारों की यहां आवश्यकता | आज्ञा का उल्लंघन!अच्छा! तो अब तैयार हो जाओ इस नहीं है। इससे तोर्म का नाश ही होगा और धर्म के बिना कढाई में कूद मरने के लिए। तुम जल्दी ही दो सैनिकों तो हम कैसे जीदे रह पाएंगे? को उपस्थित करो। ह धर्मदास :- भूतकाल में इस धर्म के सामने अनेक (राजाज्ञा होते ही चंद क्षणों में ही द्वारपाल दो। प्रतिकार आए थे.. परन्तु अनेक मुनि भगवंतो, साध्वी जी सैनिकों के साथ राज दरबार में प्रवेश करता हैं और भगवंतो और श्रावक - श्राविकाओं नी अपने प्राणों का राजा को प्रणाम कर राजा-आज्ञा के लिए प्रतीक्षा करते बलिदान देकर भी धर्म की रक्षा की है। और उन्ही शूरवीरों से यह शासन चला है। यदि हम ऐसे कायर विचार करेंगे अजयपाल:-ओसैनिको! तुम कपर्दी को है तो धर्म का ध्वंस हं जाएगा। आनेवाली पीढी भी हमें उठाकर कढाई में डाल दो। है धिक्कारेगी...अत: सभी तैयार हो जाय तिलक की रक्षा FoweowaowowowoCONNONCONOMes GoGOOGov Poorvoveoleon OR.RASHTHHHHHH EKSMCGMCONOMORMANARAINS 00000020092000000000809
SR No.537267
Book TitleJain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2002
Total Pages342
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size20 MB
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