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NaamcowanemaNaNeeonamNewwwwNCONOMINGNINGNOWwwwwwwwwewan movaoraconvicoloreovcowcowrootraovawwcovcouncovcovGovGooconovovalcohomonaCEHOUG Hot तिलक के लिये बलिदान
श्रीन शासन (नधर्मनाप्रतापी पुरषो)विशेषां वर्ष : १५. ८ ता. २९-११-२००२
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कपर्दी:-राजन्! मैं स्वयं कूदने के लिए तैयार हूँ..इसके लिए सैनिकों की कोई आवश्यकता नहीं है)
और उसी समय कपर्दी बोलता है जैनंजयति शासनम् तिलक अमर रहे।
कपर्दी के साथी युवक नारों की उद्घोषणाओं से आकाशमंडल को गुंजा देते है। उसी समय कपर्दी मंत्री अरिहंतादि कीशरणागति का स्वीकार करता है और जोरों से बोलता है | हे आत्मन्! अपने स्वार्थकी सिद्धि के लिए तूं अनेक बारमरा है,परन्तु यह सुअवसर हाथ लगा है,शासन की रक्षा के लिए।तूंधन्य बन गया, तेरा जीवनधन्य हो गया। । इतना बोलकर कपर्दी उस कढाई मे कूद पडता है। चारों ओर वातावरण में हाहाकार मच जाता है, सभी के चेहरे अत्यंत ही उदास हो जाते है) । और देखते ही देखते एक के बाद एक करके 20 युवक कढाई में कूद पडे.. उनके मृतदेहों को बाहर निकाल दिया गया।
21वाँ युवक जैसे ही कढाई की ओर बढने लगा अजयपाल की नजर उसके हाथ पर बंधे हुए मीढल पर
अजयपाल:- हाथ में यह क्या बांधा हैं? यह तो मीढल हैं। क्यो बांधा है ?
आज ही मेरी शादी हुई है, मैं अपनी पत्नी को घर पर छोडकर आया हूँ, मुझे भी कढाई में कूद पडने दो।'
अजयपाल:-तूं मर जाएगा तो री पत्नी की क्या हालत होगी?
. युवक :- आपने 20-20 नवयुकों को मरने दिया..तो अब मेरी पत्नी की चिंता क्यों करते हो ? मैं अपनी पत्नी को प्रभु के भरोसे छोड आवाहूँ..आप उसकी चिंतान करे।
अजयपाल:- बस करो! बसको! यह बलिदान अब मेरे से देखा नहीं जाएगा।ह बलिदान देख अब तो मेरा हृदय कांपरहा है।
क्षणिक आवेश में आकर मैंने यह क्या कर डाला? ओहो! मैंने अपनें वफादार मंत्री को खो दिया?
जाओ! इन बलिदानों ने तुम्हारे तिलक को अमर कर दिया है। आजसे तुम्हारा तिलक भले ही अमर रहे।
चारो ओर एकसाथ एक आवाज में जैनंजयति शासनम् तिलक अमर रहे।
FARRH Rikeste.to.tatteste...ta.ka.trakaketha.ke.khme.khatRRRRRRRRRRE
* આજે પરદેશમાં ઘર્મ-પ્રચાર માટેજવાળવાતાંજોરશોરથી ચાલે છે. શું ભારતમાં બધા ધર્મી oળી ગયા છે, જેથી પરદેશમાં જવાનું મન થાય છે? ના.છતાં ડાયમાની લઈને, પરદેશમાં જવાની ઘણી ભાવના હોરા, લોકો એવો પ્રચારકશ્રાવક છે કે, જે પોતાનો ધો ધર્મસાવીને પરદેશમાં પ્રચાર કરવા જવા તૈયાર હોય. આવી રીતે ધર્મનો પ્રચાર કરવા જ નારે શ્રાવકજીવન બરાબર જીવવું પડે. પરદેશમાં હરવા-ફરવારે જોવા લાયક સ્થળો જા નું પ્રલોભofપણ એણે મૂકી દેવું પડે. આવાધર્મપ્રચારકપરદેશમાં જાય, તો હજી કદાચ ઘર્મ સમજાવવામાં સફળ બની શકે. બાકી આજે તો પરદેશમાં જાય છે, એ લગભગધ ના નામે અધર્મનો જ પ્રચાર કરી આવે છે, એમ કહેવું પડે. * સંસારથી જેટલા દૂર રહી શકીએ, એટલું વધુ સુખ મળે, પરંતુ સંસારથી જો સર્વથામા બની જઇએ, તોતોશાશ્વત સુખની પ્રાપ્તિ થઇજાય.
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