SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ O W .VILMILARAMMAR cid sc/HOME/UCorner Hi n monamaARAM PP vgTodranmara..MMCARCIRCHI storeoveawaardnesdcocornraveevGOMMOHAMPARASHA Moreovcowserveerwecacoccoonamorcoloreovaranechoreoneoro निलक के लिये बलिदान श्रीन शासन (नधर्मना प्रतापी पुरषो)विशेषis .वर्ष : १५.७:८.11.25-11-२००२ खून की एक बुंद भी नहीं गिरनी चाहिये। खून की एक बूंद धनदास(मन में ही):- अरे ! इर कपर्दी ने तो EXEगिर गई तो तुम्हें फांसी के फंदे पर चढा दिया जाएगा। मेरी बाजी ही पलट दी अब तो मुझे किस भी उपाय से | धनदास :- मांस काटते समय खून तो निकलेगा इसे मंत्री पद से भ्रष्ट करना चाहिये। अजर पाल धर्म का हीन? द्वेषी हैं। कपर्दी धर्म का रागी है, अत: धा के बहाने ही । कपर्दी :- मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हारे करार के | इन्हें परस्पर लडा देना चाहिए। अनुसार तुम्हें मांस लेने का अधिकार हैं, खून लेने का (धनदास अजयपाल के कान के पात्र जाकर बात नहीं..अत: करो अब करार का अक्षरश: पालन। करता है:| धनदास :- तो मुझे धर्मदास का मांस नहीं| महाराजा! आप कपर्दी मंत्री को व छ भी मानते चाहिए..वह मुझे अपने पैसे लौटा दे। होंगे, परन्तु वह आपके प्रति वफादार नहीं है। । कपर्दी :- धनदास! अब यह नहीं हो सकता। करार अजयपाल:- अरे! कपर्दी और गद्द री? यह कभी का पालन तो करना ही पड़ेगा। नहीं हो सकता है, वह तो मेरा वफादार सेवक हैं, मेरी हर । धनदास:- मंत्रीश्वर! मुझे पैसे नहीं चाहिये..मुझे आज्ञा का अक्षरश: पालन करता है। और कुछ भी नहीं चाहिये। मैं अपने करार को रद्द करता धनदास:- महाराजाआपकीआज्ञार भी उसेअपनें धर्म का अधिक अभिमान है, यदि आपदपकी परीक्षा । कपर्दी:-सेठ!अब ऐसा नहीं हो सकेगा। धर्मदास करना चाहे तो कपर्दी मंत्री को अपना तिलक मिटाने की ठकी बूरी हालत का लाभ उठाने के लिए तुम शैतान की आज्ञा कर देखे। तरह निष्ठुर बन गए थे और उनके प्राण लेने के लिए तैयार (उसी समय कपर्दी मंत्री का प्रवेश होता है..धनदास हो गए थे। यह तुम्हारा सामान्य अपराध नहीं है। अब तुम| __ मौन हो जाता है) ऐसे ही नहीं छूट सकोगे। कपर्दी:- महाराजा!आप इसपर ह ताक्षर कर दो धनदास (कपर्दी मंत्री के पैर पकडते हुए):-- ।(उसी समय अजयपाल हस्ताक्षर कर देते।) मंत्रीश्वर ! मुझे माफ करो। मेरी भूल हो गई। आइंदा से अजयपाल :- (हस्ताक्षर करने के बद) मंत्रीश्वर! ऐसी भूल कभी नहीं करूंगा। तुम्हारी बुद्धि प्रतिभा के प्रति मुझे गर्व है। पर तु मेरे दरबार मुझे जाने की अनुमति दो। में तुम ये टीले करके आते हो, यह मुझे पस नहीं है, तुम कपर्दी :- तुम्हारे जैसे निष्ठुर शैतानको तो फांसी | इसे मिटा दो। चढाना चाहिए परन्तु भविष्य में ऐसी भूल नहीं करने कपर्दी :- महाराजा! ये कोई टीले- पके नहीं है। की प्रतिज्ञा करते हो अत: तुम्हें 10 लाख का दंड देकर यह तो तिलक है। 'जिनेश्वर भगवंत कीशाज्ञा को मैं भासी की सजा से मुक्त किया जाता है। शिरोधार्य करता हूँ।' इस बात का यह र तीक है। यह | अजयपाल :- वाह ! मंत्रीश्वर वाह! इसी का नाम| तिलक राज्य की व्यवस्था में कही कोई बाधक नहीं है, न्याय! करार की शर्त का पालन भी हो गया और धर्मदास अत: इसे क्यों मिटाया जाय? EMEठ की जान भी बच गई और धनदास सेठ के बुरे इरादे अजयपाल:-कुछ भी हो, मेरी आश है, तुम इस का उसे फल भी मिल गया। राजेन्द्रसिंह ! तुम भंडारी को| तिलक को मिटा दो। लाकर लाओ और उसे सोनामहोर का इनाम दे दो। कपदी :- महाराजा! तिलक करना यह तो धर्म की राजेन्द्रसिंह:-जी आज्ञा महाराजा। आज्ञा है। इसको मिटाने की आज्ञा करके आप धर्मसत्ता का (कपर्दी मंत्री-धर्मदास किसी प्रयोजनवश बाहर || अपमान कर रहे हो। धर्मसत्ता के सामने लडन उचित नहीं कमाते है) है। जगत् में ऐसा कोई माई कालाल पैदा नहीं हुआ जो naanpowoaGEX
SR No.537267
Book TitleJain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2002
Total Pages342
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy