SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PEOWoweoneONaaNeweonawanNNNNNoweoneONOMonoconoNewweoneNoweoneonaweoneNE CILI LIGIIGISUGUGI SIGUGSI GJIGJIGJIGJIGSI GJIGJIGJIGJIGJIGJIGJIGJIGJIGJIGJU GOVE इतिलक के लिये बलिदान श्रीन शासन (नधर्मना प्रतापी पुरषो)विशेषis .वर्ष : १५. s:८.ता. २९-११-२००२ इबात को डेढ महिनाबीत चूका है। अपनी शर्त के अनुसार ने सिर्फ पैसे दिए हैं, धर्मदास को कोई मांस-थोडा ही सेठसमय पर रुपा नहीं चूका पाया, अत: मैं उनसे सवा दीया हैं, आप उन्हे पैसे लेने के लिए आज्ञा कर सकते है।' सेर मांस लेना चाहता हूँ..जब किसेठ करार का भंग करते अजयपाल:-धनकेबदलेधनही दिया जाय ऐसा हुए मांस देने के लिए तैयार नहीं हैं..इस संबंध में मैं कोई नियमथोडा ही है ?..तो फिर धनदास सेठके करार आपके पास न्याय मांगने के लिए आया हूँ। का क्या होगा? अजयपाल:-शर्त तो बडी विचित्र है ? . राजेन्द्रसिंह (प्रेक्षकों की ओर देखकर):- (हाँ! धर्मदास! आप भी कुछ कहना चाहते हो क्या ? अब यह अच्छा मौका है। क्यों न इसन्याय का भार कपर्दी धर्मदास : - महाराजा! कुछ समय पूर्व मैं भयंकर मंत्री के सिर पर डाल दिया जाय, जिससे वह कांटा भी दूर आर्थिक संकट में घिर गया था, उससमयसेठ धनदासने हो जाएगा) मुझे 5 लाख रुपयों की मदद की..उनका उपकार मैं महाराजा! मंत्रीश्वर कपर्दी ही इसका सहीन्यायकर जिंदगीभर नहीं भूल गा..उनके सहयोग से मेरी वह आपति सकेंगे ऐसी समस्याओं का समाधान तो उनके लिए बाए , दूर हो गई..अब मुझेआर्थिकसंकट नहीं है..परन्तु दुर्भाग्य हाथ का खेल हैं। 3 से कुछ दिनों पूर्व असह्य बिमारी ने मुझे आ घेरा। मैं कई अजयपाल :- मंत्रीश्वर कपर्दी। इस समस्या का है दिनों तक अपने बिस्तर पर से खडा न हो सका और ऐसी समाधान आपही करे। परिस्थिति में एक महिने से अधिक समय निकल गया! कपर्दी मंत्री:-जी महाराजा! आपकी आज्ञा मुझे समय पर रुपए लौटा देने की मेरी पूरी पूरी इच्छा होने पर शिरोधार्य है। धनदाससेठ! आप जितनी चाहे उतनी रकम भी रोग के कारण में मजबूर था। इनके रुपए हडपने की आपको दिला दूँ। आपधर्मदास को इस करार में से मुक्त मेरी लेष भी इच्छ। नहीं थी। मैं तो इनके रुपए दूध से कर दो। धोकर लौटा देना चाहता हूँ। पैसे लौटाने में एक मास से धनदास:- नहीं मंत्रीश्वर! मेरे पास धन की कमी भी अधिक समय लग जाऐगा, ऐसी मुझे स्वप्न में भी नहीं है। मेरी तो एक ही चाह हैं कि आप इस करार का कल्पना नहीं थी, : झे आत्मविश्वास था कि मैं समय पर पालनकरा दे। रुपए लौटा सकूँगा. परन्तु परिस्थिति वश देरी हो गई।.. कपर्दी :- धनदास सेठ! तुम्हारे करार का मैं पूरा अब मैं उन्हे 5 लाख के बजाय 10 लाख भी देने को। पूरापालन कराऊंगा.. परन्तु बाद में तुम्हेपछताना पडेगा। तैयार हूँ..परन्तु अपने कलेजे का मांस तो कैसे दे। धनदास:-बस, आपकरार का पालन कराए। सकूँगा? आप मुझक पर दया करें। भले ही मुझे कुछ सहन करना पडे। अरे ! यह धर्मदास अजयपाल:-धनदास! तुम इस प्रकार धर्मदास|| बडी मुश्किल से तो मेरे जाल में आया हैं, अब मैं इसे के प्राण लो, यह कातक उचित है ? तुम्हें जितना ब्याजा कैसे छोड दूं। चाहिए उतना...। कपर्दी :- अच्छा! तो मैं चूरी और तराजू भगाना। धनदास :- नहीं महाराजा! मुझेधन नहीं चाहिए। आप उस करार कारलन कराइए। (कुछ क्षणों में ही द्वारपाल तराजुलेकर हाजिरहता अजयपाल - मंत्रीजनों! धर्मदाससेठ अपनें नगर है।) केखूब प्रतिष्ठिता स्त हैं अत: उनकी जान बच जाय और ___धनदास :- छूरी तो मैं लेकर ही आया हूँ। ३ करार का पालन भी हो जाय ऐसा कोई उपाय विचार कर कपर्दी:- सेठ! तुमने इस करार में सिर्फ सवासेर कहो। मांस की बात लिखी है, अत: तुम निकालों धर्मदास सेठ राजेन्द्र सिंह :- (खडा होकर) महाराजा! धनदास के कलेजे का मांस...परन्तु ध्यान रखना, मांस के साथ vwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwvwovwwvoovoovoovGovaavaovoovGovoorvoorvoorvisorrooooooooraordioormoortoormoolwoooovypoor e EKONKANOONOMomeoneOMeGMAMONGONawaseD00000GMCGMOODINDIAnnanoonawan UVCOVCOVCOVCOVCOV GOVCOV COUCOULOVCOVOG VUOVOVCOVCOV GJUJUJUCIVOJUSILIEJILJILJULIENTUITIT
SR No.537267
Book TitleJain Shasan 2002 2003 Book 15 Ank 01 to 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2002
Total Pages342
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy