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.२६००वें जन्म कल्याणक विरोध
श्री जैन शासन (464135). वर्ष १3 .
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ता. उ१-७-००१
श्रमण भगवान महावीर प्रभु के २६००वें जन्म कल्याणक के उपलक्ष में| | भारत सरकार द्वारा पूरे वर्ष में किए जाने वाले कार्यों के विषय में विरोध-पत्र ।
(9) डाक टिकिटों पर भगवान महावीर प्रभु | (५) फाइवस्टार होटलो में नौन-वेज के साथ । छवि का टंकन
जैन-वेज के परोसने की बात भी अनुचित है क्योकि या निदान अनुचित है क्योकि टिकट कई लोग |
इसमें मिलावट होने का. पूर्ण अंदेशा है ! बेहरे वही थूक लगाकर चिपकाते हे, टिकट के पीछे जो वस्तु
होगे, बनाने वाले वही होंगे । इसके बजाय तो ऐसे टिकट चिपकाने के लिये लगाई जाती है वह मटन-टेलो
फाइवस्टार होटलो अलग से हों जिनमें केवल जैन द्रष्टि नामके सभयक्ष्य पदार्थ है, टिकट पर डाकघर द्वारा
से भक्ष्य भोजन तैयार हो, और चलाने वाले जैन हो तारीख का ठप्पा लगाया जाता है, टिकट के उपयोग मे
और उनमें कार्य करने वाले सभी ऐसे व्यक्ति हो जो र आने के पश्चात वह यहॉ-तहाँ कूडे - करकर में फेंक
जैन द्रष्टि से अभक्ष्य भोजन न बने, और जिनमें रात्रि दिया जाता है | इन सब बातो से भगवान का अपमान
भोजन न हो। और आगातना होती है । .
(६) भगवान महावीर के नाम से एक नई | (:) जैनो के आगम सूत्रो का अनुवाद करवाना
युनिवर्सिटी स्थापित करना अनुचित है, क्योंकि इस 4 अनुचित है क्योकि इससे आगमो की गंभीरता और
युनिवर्सिटी में भी अन्य युनिवर्सिटीयो के समान शिक्षा पवित्रता का नाश होता है । अतः जैन सिद्धान्तो के
दीक्षा होगी उसके अंतर्गत हिंसा आदि के ऐसे कार्य FR अनुसार आगमो का अनुवाद करने का निषेध है ।
होंगे जो जैन सिद्धान्तो के प्रतिकूल है ? अतः ऐसी अलबत जैन आचार्यों - साधुओ द्वारा इन आगमो पर
युनिवर्सिटी को भगवान महावीर के नाम से मोडना टीकाएं निखी जा सकती है जो लिखी गई है । अलबता
| अनुचित है। ये टीका, यदि एक भाषा में ही हो, तो उन टीकाओ (७) कुछ तीर्थो को ही पवित्र क्षेत्र घोषित का अनवाद अवश्य अन्य भाषाओं में करवाई जा करना अनुचित है क्याकि जैनो के सभी तीर्थ पवित्र सकती है किन्तु आगमो का अनुवाद तो अनुचित है। । क्षेत्र है।
(:) सिक्कों पर भगवान महावीर की प्रतिकति । (८) कुछ तीर्थो के विकास के लिए संकारी करवाना अनुपयुक्त है क्योकि ये सिक्के व्यसनियों, वोर्डो की स्थापना करना अनचित है, क्योकि ऐसे वो? शराब, मंस, बीडी, सिगरेट इत्यादि में लीन व्यक्तियों के | की स्थापना से इन तीर्थो का विकास सरकारी बोहों के | हाथ में आयेगे इन सिक्को द्वारा ये वस्तुए एवं अन्य | हाथ म आ जायगा आर इसस अनुचित सक अभक्ष्य वस्तुएं खरीदी जायेगी, ये सिक्के चोरों. | हस्तक्षेप होगा । सभी - तीर्थो के विकास के लिई जैन भ्रष्टाचारी यों, अब्रह्म सेवन करने वालो के हाथ में भी - समाज इतना सम्पन्न एवं बुद्धिमान है कि किसी बाहय आयेगे । इस तरह इन सिक्को द्वारा अवांच्छयीय कार्य | हस्तक्षेप की आवश्यकता नही है । इससे जैसी के किए जा मंगे।
स्वंतत्रता पर कुठाराघात होगा । (1) वनस्पति का विकास भगवान महावीर के (९) भगवान महावीर को विश्वपुरूष गिरने के नाम से करना अनुचित है क्योकि इनके विकास से लिए युनेस्को को निवेदन करना अत्यंत अनुड़ित है जीव हिंना होती है, वनस्पतिकाय के अनन्त जीवों का
क्योंकि इसके लिये युनेस्को अक्षम है । भगवान महावीर नाश होना है- जो भगवान महावीर एवं जैन सिद्धान्तो | तो परम - आत्मा है, विश्वपिता के नायक है, स्वामी के विपर्र त है।
| है, परमगुरु है- विश्वपुरूष नहीं- विश्वपुरूष पोषित
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