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________________ - 2066666666666666660 Fઉ વિક્રમ વંત ૨૦૫૭ કે ચાતુર્માસ श्रीजन शासन (8418) *4413*3४६/४७*ता. 13-६-२००१ ............... .. . ............... इस वर्ष के नूतन दीक्षित मेरे साधुओं को पंजाब मे भी विचरना चाहिये। Dy .ना - रेखाकुमारी उत्तमचंदजी - भडथ और व्याख्यान में जैन तत्त्वादर्श पढना। :दीमा तिथि _ - विक्रम संवत २०५७, महा सुद ४ (प. पू. व्या. वा. आ. दे. दि. २९,१,२००१ श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म. सा.) :दीमा नाम - साध्वीजी तत्त्वेशप्रज्ञाश्रीजी हरेक भाषा मे जैन प्रवचन प्रकाशित होना चाहिए गुरुगी का नाम -साध्वीजी लक्षितप्रज्ञाश्रीजी म. (विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी म.) .......... . . . . . . . . . . . . . . सिद्धात महोदधि, सुविशाल गच्छाधिपति श्री आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर गच्छाधिपति व्याख्यान २. ME. ८६२ . . 596 वाचसाति स्वर्गीय आचार्य भगवंत श्रीमद् | विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. । विभाQिuredनिtureके अपने स्वयं लिखित पत्र उमस भpिromitrakarisma द्वारा स्पष्ट है कि पूज्य श्री ने आचार्य श्री विजयकमलरत्नसूरीश्वरजी थानाntremelतरोiraम. स एवं इनके दोनों पुत्र शिष्य रत्न श्री दर्शनरत्नविजयजी म. सा. vrik."Histori -२.... R.kick:Ko एवं विमलरत्नविजयजी म. सा. (तीनों) के प्रति कैसे प्रशंसनीय DAY उच्च कोटि के हार्दिक अभिप्राय के साथ शुभकामनाएं व्यक्त की है। -- Tranathali पूरा पत्र पूज्य श्री के स्वयं द्वारा २०४१ भादरवा वद २ ar-royain yामंगलवार का लिखा हुआ है जो निम्नानुसार स्वयं में ही सुस्पष्ट है इस 074-5 NA - ९ मूल पा का ब्लोक भी यहां प्रकाशित किया जा रहा है। dr Rarelatererni “२०४१ ना भादरवा वद २ मंगलवार" विनयादिगुणगणालंकृत मुनिराज श्री कमलरत्नविजयजी योग - Reitat/27 - 10 अनुवंदना सुखशाता साथे लखवानुं के तमारो आलोचना पत्र ints: 0-नो-gr+M. मल्यो । आलोचना मां - २००००० स्वाध्याय । तमे भाग्यशाली छो | " ५नि D96 के तमोपण संयम पाम्या अने तमारा पुत्र रत्न ने पण तमे पमाड्यु। तमारो -समhite माना सुपुत्र यम अने स्वाध्याय नो प्रेमी छे । तेमनी संयम यात्रा सारी रीते पार पर अने ते सुंदर स्वाध्याय करी शासन नी साची आराधना करते करते शासन नो रक्षक और प्रभावक बने ऐवी तेनी सघली प्रवृति मां सुशिभूषा मे सारा हायक बनी पोताना आत्मा नी मुक्ति नजीक बनावी अनेक उनीxACHशुलला KI भव्यजवों नी पण मुक्ति खूब नजीक बनावों एज एक नी एक सदा माटे - सरवनी- 4 . .. or. नी शुभाभिलाषा सहवर्ती सौने अनुवंदना सुखशाता जणावी आराधना CHA2raenimanditunni antt.. KE अने स्वाध्याय मां अप्रमत्त बनवानुं जणावशों। सौजन्य : पू. मुनिराजश्री भावेशरत्नविजयजी म., के श्रीमहानिशीथ सूत्र एवं पू. मुनिराज श्रीप्रशमरत्न विजयजी म. के श्रीआचारांगसूत्र की सफल पूर्णाहुति निमित्त श्रीमडी सकुदेवी सांकलचंदजी (नेथीजी हुकमाजी परिवार पोथेडी (जालोर-राजस्थान) हस्ते कान्तीलाल फतेहचंद, रमेशकुमार, राजेशकुमार, प्रकाश) हालारी जैनधर्मशाला, शंखेश्वर में चातुर्मास में गुरुवंदनार्थे आगन्तुक साधर्मिको की भक्ति का याक्तिंचित लाभ लीया उसके उपलक्ष्य में (विक्रम संवत २०५७)
SR No.537264
Book TitleJain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2000
Total Pages354
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size22 MB
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