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मुमुक्षु विकासकुमार प्रकाशचंदजी संघवी ( श्री कमलरल सूरीश्वरजी आये है।
ओघाका मुहूर्त लाये है।)
दीक्षा के बाद एवं दीक्षा के पूर्व विकास संघवी ( श्री कमलरत्न सूरीश्वरजीनी वर्षे महेर; दीक्षा मे बरसे लीला लहेर ।
देवो भी जिसका दास है; वो दीक्षा हमारी प्यास है।)
मुमुक्षु कुमारी शालिनी महेता ( अमृतलालजीकी दीकरी: दीक्षा लेने नीकली संसारकाला नाग है; संयम लीला बाग है।
संसार झंझावात है; संयम ज़वेरात है; मोक्ष की साडी पहनेगी कौन: शालिनी बेन; शालिनी बेन ।)
मुमुक्षु कुमारी सोनल सादरीया ( पारसमलजीने बडी की; गुरूजीने व्हाली की; संसार खुद अंगारा है; साधुजीवन झगारा है;
जैनधर्म निराला है। हम सबको प्यारा है। चारित्रकी चुदडी ओढेगी कौन: सोनल बेन: सोनल बेन ।)
एवं पीडवाडा के अनेक वाहनों से भाग्यशाली पधारे, संघपूजन, कांबली वोहराने की बोली, गुरूपूजन की आदि का लाभ पीडवाडा वाले आपके ही संसारी सुपुत्र बिपीनकुमार मरडिया एवं वीरचंदजी मरडिया आदि ने लिया।
इस मरडिया परिवार के दीक्षित (१) प. पू. पंन्यासप्रवर श्री वीररत्नविजयजी गणिवर्य (२) साध्वीजी विश्वप्रज्ञाश्रीजी (आपकी गुरुजी की लघु गुरु
भगिनी) (३) साध्वीजी विरागरत्नाश्रीजी (प्रवर्तिनी सा. रोहिताश्रीजी की
प्रशिष्या) (आपकी संसारी पक्ष में नणंद)
सूरी प्रेम की जन्मभूमि पिन्ड़वाड़ानगरमे ३१ वर्षपश्चात्सर्वप्रथम नवयुवक मुमुक्षु विकासकुमार के दीक्षा प्रसंग पर पधारने हेतु
भाव भरा अग्रिम आमंत्रण "साची एक माया रे जिन अणगार नी" ऐसे शास्त्र वचन हमारे विकास के लिये सत्य हुये। कॉलेज का मस्तीभरा जीवन छोडकर परम कृपाल परमात्मा के मार्ग का पथिक बनने को तैयार होगा ऐसी कीसी की कल्पना भी नहीं थी। ३५ वर्ष की युवा अवस्था में प. पू. आ. देव श्रीमद् कमल रत्नसूरीश्वरजी म. सा. (हमारे सांसारीक भाई ) ने पूरे परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करके जोगातर परिवार में एक आदर्श मार्ग प्रस्थापित किया था। उसी पावन मार्ग