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इस संसार में आने (जन्म) और यहाँ से चले जाने (मृत्यु) के बीच एक फासला है. मानव सभ्यताने इसे नाम दिया है : 'जीवन' दिखने में यह शब्द सीधा-सरल लगता है पर यथार्थ में यह गहन और अर्थगंभीर है.
गहरी सम्भावनाएँ होती है जीवन में. वे वीरल ही होते हैं जो उन्हें उद्घाटित कर पाते हैं इन सम्भावनाओं को सार्थक बनाने के लिए प्रारब्ध से भी कहीं अधिक महत्ता पुरुषार्थ की होती है. जिस जीवन के पिछे जितनी गहन साधना होती है, वह जीवन उतना ही अधिक विराट और तेजस्वी होता है. सन्मार्ग पर किया गया अथक सत्पुरुषार्थ जीवन को जगत् की उस ऊँचाई तक पहुँचा देता है कि व्यक्ति के चले जाने के बाद भी उसकी पवित्र स्मृति जन- जनके मन में अमर बन जाती है. ooooooooooccccccccos
* अब जिनकी स्मृतियाँ शेष हैं ।
- पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. sococccccccccces
अनूठे व बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी गच्छाधिपति पू. आचार्य प्रवर श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने भी अपने जीवन काल के दौरान् उन ऊँचाईयों का स्पर्श किया था, जो उनके चले जने के बाद संगीत में तब्दिल हो गयीं. आज भी उनके द्वारा विनिर्मित उस संगीत की दिव्य गूंज उनके श्रद्धालु भक्तजनों के हृदय में समग्रता से प्रवाहित है.
कभी अपनी मान्यताओं की वजह से तो कभी जिनशासन की अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी कट्टरताओं के कारण कमोबेश जीवन भर किसीके लिये विवादास्पद रहे ये जैनाचार्य जैन इतिहास में इस शताब्दी के शाश्वत हस्ताक्षर बन गए.
सुविशाल गच्छनायक के गरिमामय विशेषण से सम्बोधित होते आचार्य प्रवर अपने समुदाय के कुशल नेतृत्त्वकार रहे जीवन-पर्यंत आपने जिनशासन गरिमा को धूमिल करते हर प्रयास का विरोध कर धर्म के प्रति रही अपनी अद्भुत निष्ठा का परिचय दिया आपके सन्दर्भ में एक बात हमेशां याद रखी