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को तारणहार को श्रद्धांजलि
--पू. मु. श्री दर्शनरत्नविजयजी म. सुविशाल-गच्छाधिपति, जैनाचार्य श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज । साहेब का अहमदाबाद में दिनांक ९-८-१९९१ को प्रातः दश बजे सगाधि
पूर्वक कालधर्म हुआ. पूज्य आचार्य भगवन्त ने सत्तरह वर्ष की अल्प आयु में दीक्षा लेकर ५६ वर्ष तक आचार्य पद पर रहते हुए, कुल ८० वर्ष के दीक्षापर्याय में सैंकडों आत्माओं ने इनके पास दीक्षा अंगीकार की, हजारों ने इनके 8 उपदेशामृतों से कल्याण मार्ग पाया.
इन महापुरुष का हमारे पर अनन्त उपकार है कि हमारे कुटुम्ब के सभी सदस्य (म ता-पिता, २ भाई, २ बहिन) ने एक साथ अपनी जन्मभूमि पिन्डवाडा में २३ वर्ष पहले दीक्षा अंगीकार कर अनन्तज्ञानियों के बताये हुए 8 कल्याण मार्ग पर आये । निरन्तर आज तक गुर्वाज्ञा में रहकर विधिवत् शास्त्रों ९ का अध्ययन किया। विगत ६ वर्षों से तो हमारा इन महापुरुष से अधिक सम्पर्क रहा जिसके फलस्वरूप विक्रम संवत् २०४२ के पट्टक एवं वि. सं. २०४४ के मुनिसम्मेलन की अशास्त्रीयता की हमें सच्ची जानकारी प्राप्त हो जाने से हम (साधु-साध्वो कुल ३५ ठाणा) इनकी आज्ञा में ही रहते हुए उन्मार्ग में जाने से बच गये ओर सन्मार्ग में स्थिर रहे । इन महापुरुष की आज्ञा को | निष्पक्ष होकर जिसने भी शिरोधार्य की उनका कल्याण ही हुआ है क्योंकि इन महापुरुष ने अपने सम्पूर्ण साधु जीवन में जिनाज्ञा एवं गुर्वाज्ञा का अच्छी तरह पालन किया था जिसके पुण्य प्रताप से ये महापुरुष प्रत्येक कार्य में विजयी रहे । इन महापुरुष ने कभी भी सत्य को नहीं छोडा और सुदेव, सुगुरु, सुधर्म को ही जीवन में अपनाया और. अन्यों को भी इसी तरह के उपदेश दिये। इन महापुरुष की कुशाग्र-बुद्धि, हाजर जवाबी निडरता जगजाहिरी थी। प्रत्येक समस्या को जैनशास्त्रानसारी हल करने में ये बडे ही दक्ष थे । साथ साथ विचक्षण भी इतने थे कि इनके समक्ष आने वाले के भावों को पहचानन में प्रायः करके कभी इनसे भूल नहीं होती। हाजरजवाबी में तो इनकी दक्षता कमाल की ऐसी थी कि किसी भी प्रश्न कर्ता को इनके 8 उत्तर से सन्तुष्ट अथवा तो परास्त होना ही पडता था ।
. अतः हम अपने आपको गौरवशाली एवं सौभाग्यशाली समझते है कि ऐसे र महापुरुषकी निश्रा एवं आज्ञा में हम रहे । उपकारी के उपकार का वर्णन 8 शब्दों में सम्पूर्ण रीति से कर ही नहीं सकते यह तो अनुभवगम्य है ।