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________________ ૫૩૪ श्री जैन श्वे. .. ३३८३. माणिक्यनन्दि आदिके ग्रन्थों में भी इन संघोंका नाम मात्र भी उल्लेख नहीं है। यदि उस समय इन संघोंका अस्तित्व होता तो अवश्य ही किसी न किसी ग्रन्थमें इनका उल्लेख मिलता । उत्तरपुराण सबसे पहला ग्रन्थ है उसमें गुणभद्रस्वामी सेनान्वय या सेनसंघका उल्लेख करते हैं और वीरसेन ( जिनसेनके गुरु ) से उसकी परम्परा शुरू करते हैं । इससे भी मालूम होता है कि ये चारों संघ वीरसेन स्वामीके समयमें स्थापित हुए होंगे और वीरसेन अकलङ्कवके समकालीन हैं। द्राविड़संघ । जैनेन्द्रव्याकरणके का पूज्यपाद या देवनन्दिके शिष्य वज्रनन्दिने इस संघको स्थापित किया। वज्रनन्दि बडे भारी विद्वान् थे। देवसेनसूरिने उन्हें 'पाहुडवेदी महासत्तो' अर्थात् प्राभृतशास्त्रोंका ज्ञाता और महापराक्रमी बतलाया है। श्रवणबेलगुलकी माल्लषेणप्रशस्तिमें ज्रनन्दिके ' नवस्तोत्र' नामक ग्रन्थका उल्लेख करके उसकी बड़ी प्रशंसाकी गई है और उसे 'सकलाईप्रवचनप्रपञ्चान्तर्भावप्रवणवरसन्दर्भसुभगम् ' विशेषण दिया है । दक्षिण मथुरामें जो कि आजकल ' मदुरा' नामसे प्रसिद्ध है इस संघकी स्थापना हुई. मदुरा द्राविड देशके अन्तर्गत है, इसी कारण इसका नाम द्राविडसंघ प्रसिद्ध हुआ जान पड़ता है । 'द्रमिलसंघ' भी इसीका नाम है और संभवतः 'पुन्नाटसंघ' भी जिसमें कि हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेन हुए हैं इसीका नामान्तर है। इस संघमें भी कई अतभेद और अन्वय जान पड़ते हैं । वादिराजसूरिने आपको द्राविड्संघके अन्तर्गत नन्दिसंघकी · अरुङ्गल' शाखाका बतलाया है । इससे यह भी मालूम होता है कि मूलसंघके समान इसमें भी एक ननि संघ है । ___इस संघमें कवि-तार्किक और शाब्दिकों में प्रसिद्ध वादिराजसूरि, विद्यविद्येश्वर श्रीपालदेव, रूपसिद्धि व्याकरणके कर्ता दयापाल मुनि, जिनसेन आदि अनेक विद्वान् हो गये हैं । ऐसा अनुमान होता है कि तामिल और कनडी साहित्यमें इस संघके ग्रन्थ बहुत होंगे। दर्शनसारके कर्त्ता देवसेनसूरिने विक्रमकी मृत्युके ५३६ वर्ष पीछे इस संघकी उप्तत्ति बतलाई है और इसे पाँच जैनाभासों (निन्हवों) में से एक कहा १ कोशोंमें ' नाट' का अर्थ कर्नाटकदेश लिखा है, इस लिए संभव है कि 'पुं-नाट'= ‘श्रेष्ठ कर्नाटक' द्रविड़ देशको कहते हों।
SR No.536627
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 07 08 09 Pustak 11 Ank 07 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages394
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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