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________________ પર श्री - श्वे. 31. ३३८४. के लिए ही उन्होंने इस टीकाका अमोघत्ति नाम रकूवा था। अमोघवर्षने विक्रम संवत् ८७३ से ९३२ तक राज्य किया है, अत एव शाकटायनका समय भी लगभग यही होना चाहिए। प्रो. पाठकने अपने उक्त लेखमें कुछ युक्तियाँ देकर एक बात यह भी लिखी थी कि शाकटायनदिगम्बरजैन सम्प्रदायके नहीं किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायके मालूम होते हैं। उक्त लेखके प्रकाशित होने के बाद गत जुलाई की सरस्वतीमें श्वेताम्बर सम्पदायके साधु श्रीयुत मुनिजिनविजयजीका एक छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने इस विषयका एक बहुतही पुष्ट प्रमाण दिया है कि वास्तवमें शाकटायन व्याकरणके का लगभग अमोधवर्षके समयमें हुए होंगे। साथही उन्होंने इस बातको सिद्ध किया है कि शाकटायन दिगम्बर सम्प्रदायके ही थे, पाठक महाशयके कथनानुसार श्वेताम्बर सम्पदायके नहीं। वे कहते हैं कि "विक्रमकी तेरहवीं शताब्दिमें मलयागरिसूरि नामके श्वेताम्बराचार्य हो गये हैं। उन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है और उनमें प्रायः इसी शाकटायन व्याकरणका उल्लेख किया है । 'नन्दीसूत्र' नामक जैनागमकी टीकामें वे एक जगह लिखते हैं-'शाकटायनोऽपि यापनीययतिग्रामाग्रणीः स्वोपज्ञशब्दानुशासनसत्तावादी भगवतः स्तुतिमेवमाह ' । ( नन्दीसूत्र पृष्ठ २३, कलकत्ता )। 'यापनीययतिग्रामाग्रणी' का अर्थ होता है यापनीय संघके मुनियोंके नेता या आचार्य । अर्थात् शाकटायन मुनि यापनीय संघके आचार्य थे और यह संघ दिगम्बरोंके मूलसंघ, काष्ठासंघ, 'किपिच्छ आदिमेंसे एक है । इसकी उत्पत्ति विक्रमकी छठी शताब्दिके बाद हुई थी । देवसेनसूरिने 'दर्शनसार' में विक्रम मृत्युके ५२६ वर्ष बाद, मथुरामें द्राविड़ संघकी उत्पत्ति बतलाई है और इन्द्रनंदि आचार्य ' नीतिसार ' में द्राविड़ संघके बाद यापनीय संघकी उत्पत्ति बतलाते हैं । इससे निश्चित है कि वि० की छठी शताब्दिके बाद किसी समय यापनाये संघमें शाकटायन हुए और इससे जो उन्हें प्रथम अमोघवर्षके समयमें बतलाते हैं वे ठीक कहते हैं । इत्यादि ।" १ किपिच्छ' नहीं 'नि:पिच्छि' नामका संघ है जिसका दूसरा नाम 'माथुर संघ' भी है। २ मथुरामें नहीं 'दक्षिणमथुरा' में जिसे कि इस समय 'मदुरां' कहते हैं।
SR No.536627
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 07 08 09 Pustak 11 Ank 07 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages394
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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