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२-शाटायन. ___ मुनिमहाशयके इस मतसे-कि शाकटायन दिगम्बर थे हम तब तक सहमत नहीं हो सकते जब तक कि यह न मालूम हो जाय कि यापनीय संघके सिद्धान्त विशेषतः श्वेताम्बर सम्प्रदायसे मिलते हैं या दिगम्बर सम्प्रदायसे। और तब तक उन्हें श्वेताम्बर दिगम्बर कहनेकी अपेक्षा 'यापनीय जैन' कहना ही ठीक होगा। __ सम्मिलित दिगम्बर संघका नाम मूलसंघ है। इसमें चार भेद हैं नन्दिसंघ, सेनसंघ, देवसंघ और सिंहसंघ । इन चारों संघोंमें सिद्धान्तभेद कोई नहीं है-ये केवल स्थानास्थितिकी विशेषतासे हो गये हैं। इन प्रत्येकमें सरस्वती गच्छ, बलात्कार गण आदि नामधारी कई गच्छ और गण भी हैं; परन्तु उनमें भी कोई भिन्नता नहीं है।
उक्त चार संघोंके सिवाय काष्ठा संघ, द्राविड़ संघ, नि:पिच्छ संघ और याषनीय संघ, इन चार संघोंका और भी उल्लेख मिलता है; परन्तु इन्द्रनान्दि और देवसेन आदि दिगम्बराचार्योंने इन्हें श्वेताम्बरोंके ही समान जैनाभास बतलाया है। नीतिसारमें स्पष्ट लिखा है:
गोपुच्छकः श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकः। निःपिच्छिकश्च पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ॥१०॥
अर्थात् गोपुच्छक (काष्ठासंघ), श्वेताम्बर, द्राविड़, यापनीय और निःपिच्छिक — ( माथुरसंघ ) ये पाँच जैनाभास हैं।
"जैनाभास' शब्दका वही अर्थ है जो श्वेताम्बरसम्पदायमें 'निन्हव ' का होता है। ___ इनमेंसे काष्ठासंघ और मारसंघके सिद्धान्तोंसे हम थोड़े बहुत परिचित हैं। ये दिगम्बर सम्प्रदायसे बहुत ही सूक्ष्म--प्रायः नहींके बराबर मतभेद रखते हैं
और इस समय तो काष्ठासंघमें और मूलसंघमें कोई भी भेद नहीं रह गया है। ऐसी दशामें काष्ठासंघके समान हम यापनीयसंघको भी उसकी जैनाभासोंमें गणना होने पर भी हम दिगम्बर सम्प्रदायमें गिन सकते थे; परन्तु दर्शनसारमें देवसेनसूरिने श्रीकलश नामके श्वेताम्बरसे यापनीय संघकी उप्तति बतलाई है।
x सिंहसंघो नन्दिसंघ: सेनसंघो महाप्रभः। देवसंघ इति स्पष्टं स्थानास्थितिविशेषत: ॥ गणगच्छादयस्तेभ्यो जाताः स्वपरसौख्यदाः । न तत्र भेदः कोप्यस्ति प्रवज्यादिषु कर्मसु ॥८॥-नीतिसार।