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________________ सभापति शेठ खेतशीभाईका व्याख्यान. २। जिनसे हो सके वो अपनी पुत्रीको माध्यमिक और उच्च शिक्षण दें और वह शिक्षण पुत्री बेफिकरीसे ले सके इस वास्ते उसकी विवाह छोटी उमरमें न करें। .. ३ । जिन स्थानोंमें जैनोंकी अच्छी संस्था है और वहां सार्वजनिक कन्याशाला न होय तो उस स्थानके जैन महाशयोंको उचित है कि अपनी कन्याशाला स्थापन करनेका बन्दोबस्त करें। ४ । बड़ी उमरकी श्राविकाओंको दोपहरको फुरसतके समय व्यवहारोपयोगी सामान्य ज्ञान देनेके लिये स्थान २ पर ऐसे खास वर्ग खोलनेकी जरूरत है कि जिन खास वर्गोमें आरोग्य विद्याके मल तत्व बीमारोंकी शुश्रुषा और तात्कालिक इलाज और भरतकाम वगैरहकी शिक्षा दी जाय । .... ५। जैन कन्याशाला और श्राविका शालाओंके लिजे स्त्री शिक्षकोंको तैयार करनेके लिये यह वात खास जरूरतकी है कि श्राविका ओर खास कर विधवाओंकों फीमेल टेनिंग कौलिजोमें अधिक प्रमाणमैं दाखिल कराके शिक्षा कराना और ऐसी अभ्यास करती हुई स्त्रियोंको जिस जिस प्रकारकी आवश्यकतायें हो . वह स्कोलरशिप वगैरह से सहायता दी जाय । दरखास्त-राजा विजय सिंहजी बहादुर आजीमगंज । अनुमोदक-रा. रा. वीरजी राजपाल मास्तर. मुंबई । विः ,, - , नगीनदास पु नाणावटी। ,, ,, - , देवचन्द दामजी कुंडलाकर, भावनगर । ,, ,, - , धरमशी रामजी टोलीआ. कलकत्ता। ... (१०) सहधर्मियोंको आश्रय । अशक्त, निरुद्यमी; दुर्दशाग्रस्त भाइयों तथा आश्रयहीन विधवाओं और बालकोंकी स्थितिमें सुधार करने के लिये चेष्टायें की जाय और जिससे वे अपने २ निर्वाह अच्छी तरहसे कर सके उसका बन्दोवस्त किया जाय । बालाश्रम, विद्याश्रम आदि संस्थाओंको स्थापन करने तथा उन्हें हर तरहसे मदद देनेके लिये जैन श्रीमन्तोंसे यह कान्फरन्स आग्रह करती है। दरखास्त-रा. रा. मणीलाल खुशालचन्द. पालणपुर। अनुमोदक–बाबु दयालचन्दजी. आग्रा । विः ,, -,, पुनमचन्दजी सावनसुखा. कलकत्ता ।
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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