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'धर्म.'
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उन विघ्नों को तृण समान गीन कर प्राणांत कष्ट से भी धर्म साध्य से कभी विमुख नहीं होते थे. ___ आदश्विर भगवान को बारह महिनेतक अहार न मिला. श्री शातिनाथ स्वामीके जीव मेघरथ राजा एक पारेवा ( कबूतर) के लिये अपनी देह सिंचाण पक्षी को अर्पण करते हुवे प्रतिज्ञा से विमुख नहीं हुवे. श्री पार्श्वनाथ स्वामी को मेघमाली ने कितना परिसह दिया और श्रीमन् शासनोपकारी वीर परमात्मा के परिसह सहनताका तो कोई वर्णन ही क्या कर सक्ता है ? गोशाला, शूलपाणी, चंड कोशीक ने जिन्हें अतुल वेदना दी और कानोंमें खीले ठोकने वाले वाल ने भी संपूर्ण परिसह दिया, मगर अपनी प्रतिज्ञा से तनिक मात्र मी अलग नहीं हुवे. इसी तरह गजसुकमाल, स्कंधाचार्य मैतार्य मुनि आदि सत पुरुषोंके द्रष्टांत शास्त्रोमें मोजूद है. अपनी अखंड प्रतिज्ञा से उक्त महात्मा वर्य सिद्धी यह को पहुंचे है वास्ते हे आत्मन् ! तुझे भी सिद्धी यह प्राप्तिकी इच्छा हो तो धर्म साधन से क्षण मात्र भी विमुख मत रहना.
जैसे भयंकर महा अटवी में घर, दरिद्री को वैभव, अंधकार में उद्योत, और मरुधर भुमि में पाणी यह दुःख से और कष्ट सहन करनेसे प्राप्त होते हैं, इसी तरह यह अमुल्य मनुष्य देह चौराशी लाख जिवायोनि में कष्टसे प्राप्त होता हैं. अत्युत्तम जन्म प्राप्त होनेपर मी जो धर्म साधन से विमुख रहोगे तो जैसे एक गंधर्व चंदन का भार सहन करता है मगर उसकी सुगंध लेने को भाग्यशाली नहीं होता, इसी तरह धर्मात्मा का डोल करने वाले मिथ्यादृष्टी धर्मकी खुशबू नही ले सक्ते, और गंधर्व की तरह अपना जन्म व्यर्थ खो देते है कहा हैं किः
चोशठ दिवा जो बले, बारा रवि उगंत ॥
उस घर तो भी अंधार है, जस घर धर्म न हुत ॥१॥ धर्म बिना अंधकार तुल्य देह होजाती है और धर्मयुक्त मनुष्यों कि देह उद्योत कारक कही जाती है,
वास्ते हे प्रिय वाचक वृंद, विषयादी वैरीयों का साथ छोड कर धर्म सखा की संगति में चित स्थिर करो.
चला विभूतिः क्षणभंजी यौवनम्, कृतान्तदन्तान्तर वति जिवित॥ तधाप्य वश्यं परलोकसाधनें, अहों नृणां विस्मय कारी चेष्टितं ॥ १ ॥
भावार्थ पाठकवर्य ? विभूति धन दौलत पैसा पुत्रादि सर्व नाशवंत क्षणिक पदार्थ है, और जोबन क्षणभुंगर है आजजो रंग है वह कल नहीं रहेगा. बाल्यावस्था युवावस्था और अंतिम वृद्धावस्था का अनुभव करने से जोबन की क्षण भंगुरता