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________________ 4 जैन कॉन्फरन्स हरल्ड. लग जातेथे ! (सत्यहैं वो वक्तता ही क्या ? जिसने हृदयकी धुनको और मनके लक्ष्यको ही न बदल दिया ! ) ___ आप विद्वानोंके असीम प्रेमी थे! जैन ग्रंथोंका आपके हाथसे बहुत उद्धार हुआ है ! आपके मानसिक भाव अनुपम सीमातक बढ़े हुयेथे ! आपकी ओजस्विनी और प्रभावशालिनी लेखनीकी प्रशंसाके लिये असाधारण शब्दोंकी आवश्यकता है ! आपने अपने प्रशस्त जीवनमें बहुतसे ग्रंथ लिखेहैं, जिन में--" जैनतत्त्वादर्श" " अज्ञानतिमिरभास्कर" "जैनप्रश्नोत्तर" "तत्त्वनिर्णयप्रसाद""चिकागोप्रश्नोत्तर" "जैनमसवृक्ष" " सम्यक्त्वशल्योद्धार" " जैनमतस्वरूप"-येह अवश्य ही देखने योग्य है ! __ आपके जीवनके प्रत्येक विभागमें परोपकारता कूट कूट कर भरी हुईथी ! अन्यदेशोंकी अपेक्षासे पंजाबदेशमें आपका उपकार अधिक हुआ है. पंजाब प्रांतके लियेतो जैनधर्मके जन्मदाता भी आपको कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं ! वत्तेमान समयके समस्त साधुमंडलमेंसे संसारके यावत् पदार्थोंको तुच्छ समझ परोपकार बुद्धिसे निरंतर भ्रमणकर धर्म उपदेश देनेवाले यदि थे तो आप एक थे! ( पाठक महोदय ! यह तो अच्छी तरह जानते होंगे कि, जैन साधु पैसा पास न रखनके सिवाय कोई सवारी भी नहीं करते.) आपकी चिरस्थायिनी कीर्तिके स्मारक पंजाब देशमें पचासों ही जैन मंदिर हैं, इसके अतिरिक्त दो भुवन, दो सभायें, दो पुस्तकालय और दो फंडभी आपके स्मरणमें स्थापित किये गयेहैं; जिनके नाम येह हैं. आत्मानंद भुवन-गुजरांवाला (पंजाब)-यहएक विशाल मंदिरहै, इसका चित्र देखने योग्यहै. इसमें आपकी चरणपादुका स्थापित की हुई है, दूसरा भावनगर (काठियावाड) में है. इसकानाम भी वही है, इसका चित्र प्रासादका है. यहांसे" आत्मानंद प्रकाश" इस नामका मासिक पत्र भी गुजरातीमें निकलताहै. इसके सिवाय" आत्मानंद जैन ग्रंथमाला भी"यहांसे प्रकाशित होती है, श्रीआत्मानंद जैन सभा पंजाब " श्रीआत्मानंद जैन सभा भावनगर" यह सभायें भी अपना काम अच्छा कर रही हैं." श्रीआत्मानंद जैन पुस्तकालय-होशियारपूर" "श्री आत्मानंद जैन लायब्रेरी--अमृतसर" अमृतसरकी लायब्रेरीको स्थापित हुए अभी थोडाही समय हुआहै परंतु इसके प्रचारकोंका उद्योग प्रशंसनीयहै." आत्मानंद पुस्तक प्रचार फंड-देहली" और" आत्मवल्लम केलवणी फंड-" पालनपुर--(गुजरात)-इसफंडमें इस समय पचीस हजार रुपया है, जोकि अनाथ छात्रोंकी सहायतामें व्यय किया जाता है. इसके संचालक प्रतिदिन इसकी उन्नतिकी ही धुनमें मग्न हैं. सिवा इसके “आत्मानंद जैन पाठशाला" इस नामकी छोटी बडी कई पाठशालायें भी स्थापित की हुई देखने में आती हैं. जिनमें धार्मिक शिक्षाके अतिरिक्त व्यावहारिक शिक्षाभी दी जाती है.
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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