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જેન કૉન્સ હેરલ્ડ.
उक्त मागधी लेखका हिंदी भाषांतर.
भाषांतरकार: -- पं० ज्ञानचंद्रजी महाराज पंजाबी.
नमस्कार हो श्रमण भगवान श्री महावीरजी को ? मित्रगणों ! इस समय में मैं जो धर्म श्री भगवंत महावीर ( वर्द्धमान ) जी ने कथन किया है तिसका किञ्चित् स्वरूप वर्णनार्थे स्वलेखिनीको आरूढ करता हूं. देखिये, ' तृतीयाङ्ग ' में यह सूत्र है - तद्यथा - तीन प्रकार से भगवन्तोंने धर्म वर्णन किया है, जैसे कि सुअध्ययन करना, सुध्यान करना, सुतप करना. जब सुअध्ययन होता है, तभी सुध्यान हो जाता है; जिस समय सुध्यान होता है, तिस समय सुतपकी प्राप्ति होती है. इस प्रकार धर्मके तीन भाग हुए, अरिहंतोभगवन्तों का सुअध्ययन करना प्रथम धर्म है, क्योंकि विद्यासे ही सर्व कार्य सिद्ध होते हैं. किन्तु सुविधा होनी चाहिये. सुविद्या शब्द ही सम्यक् ज्ञानका बोध करता है और सम्यक् ज्ञानसे सम्यक दर्शन प्रगट होता है; और सम्यक दर्शनसे सम्यक् चारित्र प्रत्यक्ष होता है. पुनः जिस समय तीनों प्रगट होते हैं तिस समय ही जीव (आत्मा) की मोक्ष होती है. इस वास्ते सम्यक ज्ञान - दर्शन - चारत्रार्थे विद्याका अध्ययन आवश्यकीय है, अपितु सूत्रों (जैनशास्त्रों) में भी एसे कथन हैं; जैसे कि:
गाथा.
तम्हासुयमज्जिा, जेउतममहंगवेसए | जेणंअप्पाणं परंचेव, सिद्धिसंपाउणिज्जासि ।। उत्तराध्ययन अ० ११, गाथा ३२.
सूत्रको अध्ययन करें, जो उत्तमार्थके गवेषिक हैं, वही मोक्षको प्राप्त करते हैं.
अथ विद्याविषय.
प्रिय मित्रो ! सर्व विद्याओंसे श्रुतविद्या ही परम श्रेष्ट है, जिसके प्रभाव से स्वआत्मा तथा अन्यात्माके पूर्ण स्वरूपको जाना जाता है. इसी वास्ते वीतरागका आर्ष वचन है तथा अर्द्धमागधी व्याकरणमें भी एसा लेख है.
पुनः सर्व भाषाओं अर्द्धमागधी भाषा परमोत्कृष्ट है, जिसे तीर्थकर वा देवते तथा सर्वोत्तम पुरुष भाषण करते हैं: देखिये 'विवाह मज्ञप्ति ' ( भगवती ) जी सूत्र पाञ्च शतकको, जिसमें श्री स्वामी - गौतमजी श्री अर्हन् भगवान् सर्वज्ञ सर्वदशी स्वामी महावीर ( वर्द्धमान ) जी से प्रश्न करते हैं, यथा है प्रभो ! देवते कौनसी भाषा भाषण करते है ? अपितु कौनसी भाषा भाषण की हुई उनके अ