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तीसरा परस्त्री गमन. नो हास्यं सुरत प्रपंच चतुरं नालिंगनं निर्भरं ॥ नै वोरोज सरोज युग्मल लुठत् पाणिं प्रमीला मलम् ।। नबिबाधर चुंबनं स्थिरतया कुर्यात् पुमान् प्रेयसी ॥
मन्येषां रमयन्नि काम चकितः कामीति काम्य न ताः ।। अर्थ इस का यह है कि-कामी मनुष्य परस्त्री के साथ विलास करता हुआ उस समय अत्यंत डर (भय) के मारा तिसके साथ संभोगके प्रपंचमें योग्य हांस्य कर सकता नही. तिसको अत्यंत आलिंगन कर सकता नही तिस के स्तन रूपी कमलके युग्म पर (बरोबर) हस्ताक्षेप कर सकता नही (अत्यंत सुखसें) कुल रीते आंखें वींच सकता नही- स्थिरता से तिसके बिंब सरखे होठका चुंबन पण ले सकता नही इस लिये परस्त्रोक (भोगनेकी) इच्छा करनी नही. यह भी महा भयानक व्यसन है. देखो इसी व्यसनसे रावण जैसे प्रतापी शूरवीर राजाका भी सत्यामाश हो गया तो दूसरोंकी तो क्या गिनतीहै इस समय भी जो लोग इस ब्यसन में संलग्नहै उनको कैसी २ कठिन तकलिफें उठानी पडतिहै जिनको वे ही लोग जान सकते हैं.
चाथा वेश्यागमन. इस के सेवनसें भी हजारों लाखों बर्वाद हो गये और होते हुए दीख पडते है. देखो संसारमें तन धन और प्रतिष्ठा (इजत) ये तीन पदार्थ अमूल्य समझे जाते हैं परन्तु इस महाव्यसनेस उक्त तीनों पदार्थों का नाश होता है. आहा कस्तुरी प्रकरण व भर्तृहरिशतकमें कैसा अच्छा कहा है कि यह वेश्या तो सुन्दरता रुपी इन्धनसे प्रचंड रूप धारण किये हुए जलती हुई कामाग्नि है. और कामी पुरुषं उसमें अपने यौवन और धनकी आहुति दे ते हैं. पुनः उक्त अन्थो में कहा है कि वेश्याका अधरपलव यदि सुन्दर होतो भी उसका चुम्बन कुलीन पुरुषको नहीं करना चाहिये. क्यों कि वह (वेश्या का अधरपलव) तो ठग चोर दास नट और जोरी के थूकनेका पात्र हैं. इसके विषयमें वैद्यक.